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राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
सलम शताथारी प्रभाबन्द्रः श्रियानिधिः । । दीक्षितो सोलसत्कीतिः प्रचंरः पंडितामणी ।..
प्रभाचन्द्र में राजस्थान में साहित्य तथा पुरातत्य के प्रति जो जन साधारण में आकर्षण पैदा किया था वह इतिहास में सवा चिरस्मरणीय रहेगा । ऐसे सन्त को शतशः प्रणाम ।
५. ब्र० गुणकीर्ति
गुणकत्ति ब्रह्म जिनदास के शिष्य थे। ये स्वयं भी अच्छे विद्वान थे और ग्रंथ रचना में रुचि लिया करते थे। अभी तक इनकी रामसीतारास की नाम एक राजस्थानी कृति उपलब्ध हुई है जिनके अध्ययन के पश्चात् इनकी विद्वत्ता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। रास का अन्तिम भाग निम्न प्रकार है
श्री ब्रह्मचार जिणदास तु, परसाद तेह तणोए । मन वांछित फल होइ तु, बोलीइ फिस्यु घरगुए ॥३६॥ गुणकीरति कृत रास तु, विस्तारु मनि रलीए । भाई धनश्री शानदास नु, पुण्यमती निरमतीर ॥३७॥ गावउ रली रंमि रास तु, पावर रिद्धि वृद्धिए ।
मन वांछित फल होइ तु, संपजि नव निषिए ॥३८॥
'रामसीतारास' एक प्रबन्ध काव्य है जिसमें काव्यगत सभी गुण मिलते है। यह रास अपने समय में काफी लोकप्रिम रहा था इसलिये इसकी कितनी ही प्रतियां राजस्थान के शास्त्र भण्डारों में उपलब्ध होती है । ब्रह्म जिनदास की रचनाओं की समकक्ष की यह रचना निश्चय हो राजस्थानी साहित्य के इतिहास में एक प्रमूल्य निषि है। ६. आचार्य जिनसेन
आचार्य जिनसेन भ० यश:कोत्ति के शिष्य थे। इनकी प्रमी एक कृति नेमिनाय रास मिली है जिसे इन्होंने संवत् १५५८ में जवाछ नगर में समाप्त की थी। उस मगर में १६ वे तीथंकर शान्तिनाथ का चैत्यालय था उसी पावन स्थान पर रास की रचना समाप्त हुई थी।
नेमिनाथ रास में भगवान नेमिनाथ के जीवन का ९३ छन्दों में वर्णन किया गया है । जन्म, मरात, विवाह कंकरण को तोड़कर वैराग्य लेने की घटना, कैवल्य प्राप्ति