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अवशिष्ट संत.
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१. संवत १५११ में इनके सपदेश से हबष्ट जातीय श्रावक करमण एवं उसके परिवार ने चौबीसी की प्रतिमा ( मुल नायक प्रतिमा शांतिनाथ स्वामी ) स्थापित की थी।
२. मवत् १५१३ में इनकी देखरेख में चतुर्विंशति प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाई गयी।
३. संवत् १५१५ में गंधारपुर में प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई नया फिर इन्हीं के प्रदेश से जूनागढ़ में पूर्फ शिवर बाले मदिर का निर्माण करवाया गया और उसमें धातु पीतल) की प्रादिनाथ की प्रतिमा की स्थापना की गई। इस उत्सद में सौराष्ट्र के छोटे बडे राजा महाराजा भी सम्मिलित होथे। भ० भवनकीति इसमें गुरुम तिथि थे।
४. संवत् १५२५ में नागबहा जातीय धावक पूजा एवं उसके परिवार वालों ने इन्हीं के उपदेश से आदिनाथ स्वामी की धातु की प्रतिमा स्थापित की।
१. संवत् १५११ वर्षे वंशाख बुदी ५ तियो श्री मूलतंघे बलात्कारगणे सरस्वती गच्छे श्री कुदकुदाचार्यान्वये भ० सफलफोति तत्प? भट्टारक श्री भुवनकोति उपदेशात हू बड जातीय श्री करमण भार्या सूम्ही सुत हरपाल भार्या खाडी मुक्त
आसाधर एते श्री शांतिनाय नित्यं प्रणमति । २. संवत् १५१३ वर्षे वंशाख बुदि ४ गुरौ श्री मूलसंघे भ० सकलफोति तत्प?
भुवनकोत्ति-देवड भार्या लाडी मुत जगपाल भार्या सुत जाइया जिणवास एते
श्री चतुर्विभातिका नित्यं प्रणमति । शुभं भवतु । ३. प्रसस्य पनर पनरोत्तरिई गुरु श्री गंधार पुरीः प्रतिष्ठा संघवह रागरिए।।१९॥
शूनीगढ गुरु उपदेसइ सिखरबंध अतिसव । सखि ठाकर भदराज्यसंघ राजिप्रासाद मांडीउए ॥२०॥ मंडलिक राइ बहू मानी देश व देशी अ क्यापीसु । पतीलमा आदिनाय थिर थापोया ए ॥२१॥
सफलकोत्तिनुरास ४. संवत् १५२५ वर्षे ज्येष्ठ सदी ८ शुक्र श्रीमूलसंधे कुन्दकुन्दाचार्यान्वये श्री सकलकोत्तिदेवा तत् पट्टे भत भुधनकौति गुरूपदेशात् नागवहा जातीयवेष्ठि पूजा भार्या वाचू सुत सोहा भार्या वारु सुत काला, तोल्हा सुक्त बेला-एते श्री आदिनाथ नित्यं प्रणमंसि ।