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मट्टारक शुभचंद्र
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कितने ही पदों में प्रशंसात्मक गीत लिखे हैं -जो साहित्यिक एवं ऐतिहासिक दोनों प्रकार के हैं।
'म० शुभचन्द्र' साहित्य-निर्माण में अत्यधिक रूचि रखते थे। यद्यपि उनको कोई बड़ी रचना उपलब्ध नहीं हो सकी है, लेकिन जो पद साहित्य के रूप में इनकी कुतियाँ मिली है. वे इनकी साहित्य-रसिकता की ओर पर्याप्त प्रकाश डालने वाली हैं। अब तक इनके निम्न पद प्राप्त हुए हैं:
१. पेखो सखी चन्द्रसम मुख चन्द्र २. प्रादि पुरुष मजो आदि जिनेन्दा ३. कोन सखी सुध ल्याचे श्याम की ४, जपो जिन पाश्र्वनाथ भवतार ५. पावन मति मात पद्मावति पेखता ६. प्रात सममे शुभ ध्यान धरीजे ७. वासु पूज्य जिन विनती-सुणो मासु पूज्य मेरो बिनती ८. श्री सारखा स्वामिनी प्रण मि पाय, स्तबू वीर जिनेश्वर विबुध राय । ६. प्रज्मारा पार्श्वनाथनी वीनती
उक्त पदों एवं विनतियों के अतिरिक्त अभी "मर रामचन्द्र' की और भी रचनाएं होंगी, जो किसी गुटके के पृष्ठों पर अथवा किसी बास्त्रि-भण्डार में स्वतंत्र ग्रन्थ के रूप में अज्ञातावस्था में हुए पड़ी अपने उद्धार की बाट जोह रही होंगी।
पदों में कवि ने उत्तम भावों को रखने का प्रयास किया है। ऐसा मालूम होता है कि 'शुभचन्द्र' अपने पूर्ववर्ती कवियों के समान 'नेमि-राजुल' की जीवनघटनामों से अत्यधिक प्रभावित थे इसलिए एक पद में उन्होंने "कौन सखी सृषल्पावे श्याम की' मार्मिक भाव भरा 1 इस पद से स्पष्ट है कि कवि के जीवन पर मीरां एवं सूरदास के पदों का प्रभाव भी पड़ा है:
कौन सखी सुध त्यावे श्याम की। मधुरी धुनी मुखचंद विराजित, राजमति गुण गावे ॥श्याम.॥१॥ अग विभूषण मनीमय मेरे, मनोहर माननी पाव।। फरो कछू तत मंत भेरी सजनी, मोहि प्रान नाथ मोलावे ॥श्याम,।।२।। गज गमनौ गुण मन्दिर स्यामा, मनमय मान सताये। कहा अवगुन अव दीन दयाल छोरि मुगति मन भावे ॥श्याम.॥३।।