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मुनि मन्दि
बाल मरण मुणि परिहरहि, पंडिय मररपु मरेहि । वारह जिरण सासरण कहिय, अणु बेक्खउ सुमरेहि ॥२२६।।
रूव गंध रस' फसडा, स६ किम गुण हीरा । अछइसी देहडि यस उ, घिउ जिम खीरह लीण ॥२७६।।
मसिम पा
जो पढइ पहावद संभलाइ, देविण दबि लिहाबह। महयंदु भण्इ सो नित्त लउ, अक्खइ सोक्षु परायइ ॥३३३।। इति दोहा पाहुड समाप्त ॥शुभं भवतु।।
२. भुवनकीर्ति
भुवन कौसि भ. सकलकत्ति के शिष्य थे ।' मकलवी त्ति की मृत्यु के पश्चात् ये भट्टारक बने लेकिन गे भट्टारक किस संवत् में बने इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता है। भट्टारक सम्प्रदाय में इन्हें संवत् १५०८ में भट्टारक होना लिखा है। लेकिन अन्य भट्टारक पट्टावलियों में सकलकोसि के पश्चात् धर्मकोत्ति एवं विमलेन्द्रकोत्ति के भट्टारक होने का उल्लेख भाता हैं। इन्हीं पट्टायलियों के अनुसार धर्मकीत्ति २४ वर्ष तथा विमलेन्द्रकीत्ति १८ वर्ष भट्टारक रहे। इस तरह सकलकीति के ३३ वर्ष के पश्चात् भुवनकीत्ति को अर्थात् संवत् १५३२ में मट्टारक होना पाहिए, लेकिन भुवनकोत्ति के पश्चात् होने वाले सभी विद्वानों एवं भट्टारकों ने उक्त दोनों भट्टारकों का कहीं भी उल्लेख नहीं किया इसलिये यही मान लिया जाना
१. आदि शिष्य आचारि जूहि गुरि दौखियाभूतलिभुवनकीति
सकमकीत्ति रास २. देखिये भट्टारक सम्प्रदाय पृष्ठ संख्या १५८ ३. त्यारपुळे सकलकीत्ति ने पार्ट की धर्मकीति आचार्य तुमा ते सागवाडा हप्ता तेणे
श्री सागवाडो खने देहरे आदिनाथ नी प्रासाद करावीनं । पाछे नोगामो ने संधे पर स्थापना करि है। पाछ सागवाडे गाई में पिता ने पुत्रकने प्रतिष्ठा करावी पौतोपुर मंत्र वोधो ते धर्मकीत्ति ये वर्ष २४ पाट भोग्यो पर्छ परोक्ष थया । पुठे पोताने वी करें।