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राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एव कृतित्व
सब सखी मिली मन मोहन के ढिग, जाई कथा जु सुनावे । सुनो प्रभु श्री शुभचन्द्र के साहिब, कामिनी कुल क्यों लजाये ॥श्याम.॥४॥
कवि ने अपने प्रायः सभी पद मक्ति-रस प्रधान लिखे हैं । उनमें विभिन्न तीर्थकरों का स्तवन किया गया है । आदिनाथ स्तवन का एक पद देखिए
आदि पुरुष भजो प्रादि जिनेंदा ।।टेका। सकल सुरासुर शेष सु व्यं तर, नर खग दिनपति सेवित चदा ।।१।। जुग आदि जिनपति भये पावन, पतित उदारण नाभि के नंदा 1 दीन दयाल कृपा निधि सागर, पार करो अक्ष-तिमिर दिनेदा ॥२॥ केवल ग्यान थे सब कछु जानत, काह कर प्रभु मो मति मंदा । देखत दिन-दिन चरण सरते, विनती करत यो सूरि शुभ चंदा ॥३||
समय:
'शुभचन्द्र' संवत १७४५ तक मट्टारक रहे । इसके पश्चात् 'रत्नचन्द्र' को भट्टारक पद पर सुशोमिन किया गया । "म. रत्लचन्द्र' का एक लेख स. १७४८ का मिला है, जिसमें एक गोत को प्रतिलिपि पं. श्रपाल के परिवार के सदस्यों के लिए की गई श्री-ऐसा उल्लेख किया गया है । इस तरह 'भ० शुभचन्द्र' ने २४-२५ वर्ष तक देश के एक कोने से दूसरे कोने तक भ्रमण करके साहित्य एवं संस्कृति के पुनरुत्थान वा जो अलख जगाया था-वह सदैव स्मरणीय रहेगा ।