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राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
है । कवि को वर्णन शैली साधारण है । 'रास' काव्यकृति न होकर कथाकृति है, जिसके द्वारा जनसाधारण तक 'भगवान् नेमिनाथ' के जीवन के सम्बन्ध में जानकारी पहुंचाना है । कवि की यह संभवतः प्रथम कृति है, इसलिए इसकी भाषा में श्रोता नहीं आ सकी है। इसे संवत् १६१५ की श्रावण सुदी १३ के दिन समाप्त की थी । रचना स्थल पार्श्वनाथ का मन्दिर था। कवि ने अपना परिचय निम्न शब्दों में दिया है :--
अहो श्री मूल संग मुनि सरस्वती गछि छोड़ि हो चारि कमाइनि भछि । अनन्तकीति गुरु वंदिती, अहो तास तरी सस्ती कीयो बाण | राइमल ब्रह्म सो जाणिज्य, स्वामि हो पारस नाथ को थान ॥
श्री नेमि जिनेश्वर पाय नमो ॥१३७||
श्रहो सोलह पन्द्रहे रच्यो रास, सांवल तेरसि सावण मास । बार ते जो बुधवासर भलं, जैसी जी बुधि दिन्हो अवकास । पंडित कोई जी मति हंसी, ग्रहो तैसि जि बुधि कियो परगास || १३८।।
राम की काव्य शैली का एक उदाहरण देखिये
महो राजमति ऋषि किया हो उपाउ
कामिणी चरित ते गिण्या हो न जाइ ।
बात बिचारि विने धर सुध,
चिपस्यो दोन हो ध्यान |
जैसे होविषु रत्ना जडिउ
रागा बचन सुनवि कानि ।
श्री नेमि जिनेश्वर पाय ननु ॥६७॥
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रचना अभी तक प्रकाशित है। इसकी प्रतियां राजस्थान के कितने ही भण्डारों में मिलती हैं। रारा का दूसरा नाम 'नैमिश्वर फाग' भी है । २. हनुमत कथा रास
यह कवि की दूसरी रचना, जो संवत् १६१६ वैशाख बुदी ९ शनिवार को समाप्त हुई थी अर्थात् प्रथम रचना के पश्चात् ९ महीने से भी कम समय में कषि ने जनता को दूसरी रचना भेंट की । यह उसकी साहित्यिक निष्ठा का द्योतक है । रचना एक प्रबन्ध काव्य है, जिसमें जैन पुराणों के अनुसार हनुमान का वर्णन किया गया है । यह एक सुन्दर काव्य है, जिसमें कवि ने कहीं २ अपनी विद्वत्ता का भी