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ब्रह्म राममाल
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देस भलो तिह नागर चाल, तक्षिक गळू अति बन्यौ विसाल । सोम बाड़ी बाग सुचंग, कूप बावड़ी निरमल प्रग ।।५४५।। चहु दिसि बन्या अधिकबाजार, भरचा पटंबर मोतीहार । जिन चश्यालय बहुत उत्तग, चंदवा तोरण घुजा मुभंग ।।६४६।।
८. चन्द्रगुप्त धोपई
इसमें भारत के प्रसिद्ध सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य को जो १६ स्वप्न आये थे और उन्होंने जिनका फल अन्तिम चतके वली मद्रबाहु स्वामी से पूछा था, उन्हींका इस कृति में वर्णन दिया गया है । यह एक लघु कृति है। जिसमें २५ प्रौपई छन्द हैं । इसको एक प्रति महावीर-भवन, जयपुर के संग्रहालय में सुरक्षित है। ९. निदोष सप्तमी व्रतकथा
यह एक व्रत कथा है । यह मादवा सुदी सप्तमी को किया जाता है और उस समय इस कथा को अत करने वालों को सुनाया जाता है। इसमें ५९ दोहा चौपई छन्द है । अन्तिम छन्द इस प्रकार है:
नर नारी जो नीदुष फरे, सो संसार थोड़ो फिर ।
जिन पुराण मही इम सुण्मी, जिहि विघि ब्रह्म रायमल्ल भयो।।९।।
इसकी एक प्रति महाबीर-भवन, जयपुर के संग्रहालय में है । मूल्यांकन
'ग्रह्म रायमल्ल' महाकवि तुलसीदास के पूर्व कालीन कवि थे। अब कवि अपने जीवन का अन्तिम अध्याय समाप्त कर रहे थे, उस समय तुलसीदास साहित्यिक क्षेत्र में प्रवेश करने की परिकल्पना कर रहे होंगे । 5. रायमल्ल में काव्य रचना की नैसर्गिक अमिचि थी। वे ब्रह्मनारी थे, इसलिए जहां भी चातुर्मारा करते, अपने शिष्यों एवं अनुयायियों को वर्षाकाल समाप्ति के उपलक्ष्य में कोई न कोई कृति अवश्य मेंट करते । वे साहित्य के प्राचार्य थे। लेकिन काव्य रचना करते पे सीधी-सादी जन भाषा में क्योंकि उनकी दृष्टि में क्लिष्ट एवं अलंकारों से प्रोत-प्रोत रचना का जन-साधारण की अपेक्षा विद्वानों के ही लिए अधिक उपयोगी सिद्ध होती है। अब तक उनकी १३ कृतिमा उपलब्ध हो चुकी हैं और वे सभी कथा प्रधान रचनाएं हैं। इनकी भाषा राजस्थानी है। ऐसा लगता है कि स्वयं कवि अथवा उनके शिष्य इम कृतियों को जनता को सुनाया करते थे । कवि हरसौरगढ़, रणथम्भोर एवं सांगानेर में काव्य-रचना से पूर्व भी इसी तरह विहार करते रहे