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बम रायमहल
रचना काल है संवत् १६२० को अपाऊ सुदी १३ शनिवार । गढ़ पर उग समय अकबर बादशाह का शासन था तथा चारों ओर सुग्बमम्पदा व्याप्त श्री। इसी को कवि के शब्दों में पढ़िए
हो सोलाम सीसौ शुम वर्ष, मास असाद भरणे सुभ हर्ष। तिथि तेरसि सित सोभिनी हो, अनुराधा नषित्र स्तुभ सर IT : चरण जोस दीस मला हो, भन बार 'लनीसरबार ॥२६४॥
हो रणथंभ्रमर सोभोक विलास भरिया नीर ताल चहु पास । बाग विहर बावड़ी घणी, हो धन कन सम्पत्ति तरणी निघान । साहि अकबर राजई, हो सोभा प्रणी जिसौ सुर थान ।।२९५।।
६. भविष्यवत्त रास
यह कयि का सबसे बड़ा रासक काम्य है, जिसमें भविष्यदत्त के जीवन का विस्तृत वर्णन है। 'भविष्यदत्त' एक श्रीष्टि-पुष था। यह अपने सौतेले माई बन्धुदत्त के साथ व्यापार के लिए विदेश गया। भविष्यदत्त ने वहां खूब धन कमाया। कितने ही देशों में ये दोनों भ्रमण करते रहे। किन्तु बन्धुदत्त और उसमें कमी नहीं बनी। उसने भविष्यदत्त को कितनी ही बार धोखा दिया और अन्त में उसको मन में अकेला छोड़ कर स्वदेश लौट प्राया । वहाँ जाकर वह भविष्यदत्त की स्त्री से ही विवाह करना चाहा, लेकिन भविष्यदत्त के वहां समय पर पहुँच जाने पर उसका काम नहीं बन मका । इस प्रकार भविष्यदत्त का पूरा जीवन रोमाञ्चक कथानों से परिपूर्ण है । वे एक के बाद एक इस रूप में आती है कि पाठकों की उत्सुकता कभी समाप्त नहीं होती है।
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'भविष्यदत्त रास' में ९१५ पञ्च है, जो दोहा चौपई आदि विविध साम्दों में विभक्त है । कवि ने इसका समाप्ति-समारोह सांगानेर (जयपुर) में किया था। उस समय जयपुर पर महाराजा भगवंतदास का शासन था। सांगानेर एक स्यापारिक नगर था। जहां जवाहरात का भी अच्छा व्यापार होता था। श्रावकों की वहां अच्छी बस्ती थी और वे धर्म ध्यान में लीन रहा करते थे। रास का रचनाकाल संवत् १६३३ कात्तिक सुदी १४ शनिवार है। इसी वर्णन को कवि के शब्दों में पढ़िये
सौलह से तेतीस सार, कातिग सुदी चौदसि शनिवार । स्वाति नक्षित्र सिद्धि सुमजोग, पीड़ा दुख न व्याप रोग !९०८॥ देस. तू ढाहर सोमा घणी, पूजै तहां आलि मण तणी 1 - निमल तली नदी बहुफेरि, सुबस बस बहु सांगामेरि ।।१०।।
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