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वारडोली के संत कुमुदचंद्र
बारडोली गुजरात का प्राचीन नगर है । सन् १९२१ में यहां स्व. सरदार बल्लभ भाई पटेल ने भारत की स्वतन्त्रता के लिए सत्याग्रह का बिगुल बजाया था मौर बाद में वहीं की जनता द्वारा उन्हें 'सरदार की उपाधि दी गई थी। आज से ३५० वर्ष पूर्व भी यह नगर अध्यात्म का केन्द्र था। यहां पर ही 'सन्त कुमुदुचन्द्र को उनके गुरु भ० रनकोत्ति एवं जनता ने भट्टारक-पद पर अभिषिक्त किया था। इन्होंने यहां के निवासियों में धार्मिक चेतना जाग्रत की एवं उन्हें सच्चरित्रता, संयम एवं त्यागमय जीवन अपनाने के लिए बल दिया। इन्होंने गुजरात एवं राजस्थान में साहित्य, अध्यात्म एवं धर्म की त्रिवेणी बहायी।
संत कुमुदचंद्र वाणी से मधुर, पारीर से सुन्दर तथा मन से स्वच्छ मे। जहां भी उनका विहार होता जनता उनके पीछे हो जाती 1 उनके शिष्यों ने अपने गुरु को प्रशंसा में विभिन्न पद लिसे हैं। संयमसागर ने उनके शरीर को बत्तीस लक्षणों से सुशोभित, गम्भोर बुद्धि के धारक तथा वादियों के पहाड़ को तोड़ने के लिए बच्च समान कहा है।' उनके दर्शनमात्र से ही प्रसन्नता होती थी। वे पांच महात्रत तेरह प्रकार के चारित्र को धारण करने वाले एवं बाईस परोपड़ को सहने वाले थे। एक दूसरे शिष्य धर्मसागर ने उनकी पात्रकेशरी, जम्यूकुमार, मद्रबाहु एवं गौतम गणधर से तुलना की है।
उनके बिहार के समय कुकम छिटकने तथा मोतियों का चौक पूरने एवं बधावा गाने के लिए भी कहा जाता था। उनके एक और शिष्य गणेश ने उनकी निम्न शब्दों में प्रशंसा की है:
१. ते बहु खि उपमो पीर रे, बत्तीस सक्षम सहित शरीर रे ।
बुद्धि बहोरि छे गंभीर रे, वादी नग खण्डन वज समधार रे ॥ २. पंच महाबत पाले चंग रे, प्रयोदश चारित्र के अभंग रे।
वावीय परोसा सहे प्रगि रे, दरशन दीठे रंग रे ।। ३. पात्रफेशरी सम जांगियेरे, जाणों के अंजु कुमार ।
भद्रबाहु यतिवर अयो, कलिकाले रे गोयम अंग्रतार रे॥ ४. .पुरि रे सह आयो, तहाँ कुकर छडो वेषडावो। . . . . वाई मोतिये चौक पूरावो, रूडा सह गुरु कुमुदचंदने बघावे ।।
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