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राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
चाल्यो दूत पयारणे रे हे तो, थोड़ो दिन पोयणपुरी पोहोतो । दीठी सीम सघन कस साजित, वापी कूप तडाग विराजित । कलकार जो नल जल कुडी, निर्मल नीर नदी अति उडी । विकसित कमल अमल दलपंती, फोमल कुमुद समुज्जल फती ।। वन वाडी आराम सुरंगा, ध दब उधर भा। करणा केतकी कमरख केली, नव नारंगी नागर वेली ॥ अगर तगर तरु तिदुक ताला, सरल सोपारी तरल तमाला । वदरी वकुल मदाड बीजोरी, जाई जुई जंबु जमीरी।। चंदन चंपक चाउरउली, वर बासंती वटवर सोली। रायणरा जंबु सुविशाला, दाडिम दमणो द्राष रसाला ॥ फूला सुगुल्ल प्रमूल्ल गुलाबा, मीपनी वाली निबुक निका । करण पर कोमल लंत सुरंगी, नालीपरी दोशे अति चंगी ॥ पाडल पनश पलाश महाधन, लवली लीन लवंग लताधन ।।
बाहुबलि के द्वारा अधीनता स्वीकार न किए जाने पर दोनो ओर की विशाल सेनायें एक दूसरे के सामने आ इटीं । लेकिन जब देवों और राजाओं ने दोनों भाइयों को ही चरम शरीरी जानकर यह निश्चय किया कि दोनों ओर की सेनाओं में युद्ध न होकर दोनों भाइयों में ही जलयुद्ध मल्लयुद्ध एवं नेत्रयुद्ध हो जाये और उसमें जो जीत जावे उसे ही चक्रवर्ती मान लिया जावे । इस वर्णन को कवियों के वाब्दों में पढिये :--
चण्य युद्ध त्यारे सह वेढा, नीर नेत्र मल्लाह वपरदया। जो जोते ते राजा कहिय, तेहनी आज विनयसु वहिए । एह विचार करीने मरवर, घल्या सहु साथै महर भर ।
चाल्या मल्ल अखाड़े बलोआ, सुर नर किन्नर जोवा मलीआ । काछ्या काछ कसी कद तांणी' बोले यांगद बोली वाणी। भुषा दंड मन सुड समाना, ताडता संसारे नाना । हो हो कार करि ते पाया, बछो वच्छ पङ्या ले गया । हक्कारे पश्वारे पाडे, दलगा वलग करी ते बाडे ।। पग पडघा पोहोबी तल बाजे, कडकडता तरुवर से माजे। नाठा वनचर त्राठा कायर, छूटा मयगल फूटा सायर ।।