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________________ १४० राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व चाल्यो दूत पयारणे रे हे तो, थोड़ो दिन पोयणपुरी पोहोतो । दीठी सीम सघन कस साजित, वापी कूप तडाग विराजित । कलकार जो नल जल कुडी, निर्मल नीर नदी अति उडी । विकसित कमल अमल दलपंती, फोमल कुमुद समुज्जल फती ।। वन वाडी आराम सुरंगा, ध दब उधर भा। करणा केतकी कमरख केली, नव नारंगी नागर वेली ॥ अगर तगर तरु तिदुक ताला, सरल सोपारी तरल तमाला । वदरी वकुल मदाड बीजोरी, जाई जुई जंबु जमीरी।। चंदन चंपक चाउरउली, वर बासंती वटवर सोली। रायणरा जंबु सुविशाला, दाडिम दमणो द्राष रसाला ॥ फूला सुगुल्ल प्रमूल्ल गुलाबा, मीपनी वाली निबुक निका । करण पर कोमल लंत सुरंगी, नालीपरी दोशे अति चंगी ॥ पाडल पनश पलाश महाधन, लवली लीन लवंग लताधन ।। बाहुबलि के द्वारा अधीनता स्वीकार न किए जाने पर दोनो ओर की विशाल सेनायें एक दूसरे के सामने आ इटीं । लेकिन जब देवों और राजाओं ने दोनों भाइयों को ही चरम शरीरी जानकर यह निश्चय किया कि दोनों ओर की सेनाओं में युद्ध न होकर दोनों भाइयों में ही जलयुद्ध मल्लयुद्ध एवं नेत्रयुद्ध हो जाये और उसमें जो जीत जावे उसे ही चक्रवर्ती मान लिया जावे । इस वर्णन को कवियों के वाब्दों में पढिये :-- चण्य युद्ध त्यारे सह वेढा, नीर नेत्र मल्लाह वपरदया। जो जोते ते राजा कहिय, तेहनी आज विनयसु वहिए । एह विचार करीने मरवर, घल्या सहु साथै महर भर । चाल्या मल्ल अखाड़े बलोआ, सुर नर किन्नर जोवा मलीआ । काछ्या काछ कसी कद तांणी' बोले यांगद बोली वाणी। भुषा दंड मन सुड समाना, ताडता संसारे नाना । हो हो कार करि ते पाया, बछो वच्छ पङ्या ले गया । हक्कारे पश्वारे पाडे, दलगा वलग करी ते बाडे ।। पग पडघा पोहोबी तल बाजे, कडकडता तरुवर से माजे। नाठा वनचर त्राठा कायर, छूटा मयगल फूटा सायर ।।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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