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________________ वारडोली के संत कुमुदचंद्र १४१ गड गडता गिरिवर ते पड़ीप्रां, फूत फरता फणिपति डरीआ । गद्ध गडगडीमा मन्दिर पडीओ, दिग दंतीच मक्या चल चकीमा । जन खलभली पावाल कछलोआ, भव-भीरू अवला फल मली। तोपरख ले घरणी धवदूके, लड़ पडता पडता नवि नूके । उक्त रचना भामेर शास्त्र मण्डार गुटका संख्या ५२ में पत्र संख्या ४० से ४८ पर है। २. भाविनाथ विवाहलो इसका दूसरा नाम ऋषम विवाहलो मी है । यह भी छोटा खण्ड काव्य है, जिसमें ११ ढालें है। प्रारम्भ में ऋषभदेव की माता को १६ स्वप्नों का प्राना, ऋषभदेव का जन्म होना तथा नगर में विभिन्न उत्सवों का प्रायोजन किया गया । फिर : दिवान का गए है। 17ी हाल में उसका वैराग्य धारण करके निर्वाण प्राप्त करना भी बतला दिया गया है। कुमुदचन्द्र ने इसे भी संवत् १६७८ में घोया नगर में रचा था। रचना का एक वर्णन देखिये कछ महाकछ रायरे, जे हनू जग जमा गायरे । नस कुअरी करें सोहरे, जोता जनमान' मोहेरे । सुन्दर वेषी विशाल र, अरव शशी सम माल रे । नमन कमल दल छाने रे, मुख पूरणचन्द्र राजे रे । नाक मोहे तिलनु फूल रे, अधर सुरंग तणु नहि भूल रे । ऋषभदेव के विवाह में कौन-कौन सी मिठाइयां बनी थीं, उसका भी. रसास्वादन कीजिए रटि लागे घेवरने दीठा, कोल्हापाका पतासां मोठा। दूध पाक चणा सांकरीआ, सारा सकरपारा कर करीधा। मोटा मोती भामोद कलावे, दलीला कसम सीमा भावे । प्रति सुरवर सेवईयां सुन्दर, मारोगे मोग पुरंदर । प्रीसे पापड गोटा तलोमा, पूरी प्राला अति ऊजलीमा । __ नेमिनाथ के विरह में राजुल किस प्रकार तफती थी तथा उसके बारह महीने किस प्रकार व्यतीत हुए, इसका नेमिनाथ बारहमासा में सजीव वर्णन किया
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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