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राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
है। इसी तरह का वर्णन कधि ने प्रणय गीत एवं हिडोलना-गीत में भी किया है।
फागृण केमु फूलोयो, नर नारी रमे वर फाग जी। हास विनोद करे घरणा, किम नाहे घरयो वैराग जी ।
नेमिनाथ वारहमामा
सीयाला सगलो गयो, परिण नावियो यदुराय । तेह बिना मुझने झूरता, एह दोहहा रे बरसा सो थापफे।
प्रणय-गीत
बणजारा गीत में कवि ने संसार का सुन्दर चित्र उतारा है। यह मनुष्य बरगजारे के रूप में यों हो संसार से भटकता रहता है। वह दिन रात पाप कमाता हे और संसार बंधन से कभी भी नहीं छूटता।
पाप करयां ते अनंत, जीवदया पाली नहीं । सांचो न बोलियो बोल, भरम मो सानहु बोलिया ।।
शील गीत में कवि ने परित्र प्रधान बीवन पर अत्यधिक जोर दिया है। मानव को किसी भी दिशा में प्रामे बढ़ने के लिए चरित्र-बल की आवश्यकता है। साधु संतों एवं संयमी जनों को स्त्रियों से अलग ही रहना चाहिए-प्रादि का अच्छा वर्णन मिलता है इसी प्रकार कवि की सभी रचनायें सुन्दर हैं।
पदों के रूप में कुमुदचन्द्र ने जो साहित्य रचा है यह और भी उच्च कोटि का है । भाषा, शैली एवं भाव सभी दृष्टियों से ये पद सुन्दर हैं । "मैं तो नर भव वादि गवायो" पद में कवि ने उन प्राणियों की सच्ची आत्मपुकार प्रस्तुत की है, जो जीयन में कोई भी शुभ कार्य नहीं करते है । अन्त में हाथ मलते ही चले जाते हैं।
___'जो तुम दीनदयाल कहावत' पद भी भक्ति रस की सुस्दर रचना है। भक्ति एवं अध्यात्म-पदों के अतिरिक्त नमि राजुल सम्बन्धी भी पद हैं, जिनमें नेमिनाथ के प्रति राजुल की सच्ची पुकार मिलती है । नेमिनाथ के बिना राजुल को न प्यास लगती है और न भूख सताती है। नींद नहीं पाती है और बार-बार उठकर गृह का आंगन देखती रहती है । यहाँ पाठकों के पठनार्थ दो पद दिए जा रहे है
राग-धनश्री
मैं तो नर मन वादि गमायो । न कियो जप तप व्रत विधि सुन्दर, काम भलो न कमायो॥
मैं तो....॥१॥