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बारडोली के संत कुमुदचंद
छन्द हैं । शेष गीत ए के इन में हैं। यद्यपि शशी रचनाएं सुन्दर एवं भाव पुर्ण हैं लेकिन भरत बाहुबलि छंद, आदिनाथ यिया हलो एवं नमीश्वर हमची इनकी उत्कृष्ट रचनायें है । भरत बाहुबलि एक रण्ड काव्य है, जिसमें मुख्यत: भरत और बागबलि के युद्ध का वर्णन किया गया है । भरत चक्रवत्ति को सारा भूमण्डल विजय करने के पश्चात् मालूम होता है कि अभी उन के छोटे भाई बाहुबलि ने उनको अधीनता स्वीकार नहीं की है तो सम्राट भरत बाहुबलि को समझाने को दूत भेजते हैं । दूत और बहुधलि का उत्तर-प्रत्युत्तर बहुत सुन्दर हुआ है।
अन्त में प्रोनों भाइयों में युद्ध होता है, जिसमें विजय बाहुबलि की होती है । लेकिन विजयश्री मिलने पर भी वाहवलि जगत से उदासीन हो जाते हैं और वैरसम्य धारगा कर लेते हैं । घोर तपश्चर्या करने पर भी 'मैं भरत की भूमि पर खड़ा हुआ हूं,"यह शल्य उनके मन से नहीं हटती और जब स्वयं सम्राट् भरत उनके चरणों में जाकर गिरते हैं और वास्तविक स्थिति को प्रगट करते हैं तो उन्हें तत्काल केवल ज्ञान प्राप्त होकर मुक्तिश्री मिल जाती है। पूरा का पूरा खण्ड काव्य मनोहर शब्दों में गुथिन है । रचना के प्रारम्भ में जो अपनी गुरू परम्परा दी है वह निम्न प्रकार है
पण विवि पद प्रादीश्नर केरा, जेह नामें छूटे भव-फेरा । ब्रह्म सुता समरू मतिदाला, गुण गण मलित जग विख्याता ।। वंदवि गुरू विद्यानंदि सूरी, जेहनी कौति रही भर पूरी । तस पट्ट कमल दिवाकर जाणु, मल्लिभूषण गुरु गुण वस्वा ।। तस पट्ट पट्टोबर पंडित, लक्ष्मीचन्द महाजस मंडित । अमयचद गुरु दीलल वायक, सेहेर वंश मंडन सुखदायक ।। अभयनंदि समरू' मन माहि, भव भूला बल गाई बाहि । तेह तणि पट्ट गुणभूषण, वंदवि रत्नकीरति गत दूषण ।।
भरत महिपति कृत मही रक्षरण, बाइबलि बलवंत विचक्षण ।
बाहुबलि पोवनपुर के राजा थे । पोदनपुर धन धन्य, बाग बगीचा तथा झीलों का नगर था। भरत का दूत जब पोदनपुर पहुंचता है तो उसे चारों छोर विविध प्रकार के सरोवर, वृक्ष, लतायें दिखलाई देती हैं। नगर के पास ही गंगा के समान निर्मल जल वाली नदी बहती है। सात साल मंजिल वाले सुन्दर महन नगर की शोभा बढ़ा रहे हैं । कुमुदचन्द ने नगर की सुरक्षा का जिस रूप में वर्णन किया है उसे पहिये