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मुनि समयचंद्र
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उक्त प्रशंसात्मक गीतों से यह तो निश्चित सा जान पड़ता है कि अमवचन्द्र की जन-समाज में काफी अधिक लोकप्रियता थी। उनके शिष्य साय रहते थे और जनता को भी उनका स्तवन करने की प्रेरणा किया करते थे ।
'अभयपन्द्र' प्रचारक के साथ-साथ साहित्य-निर्माता भी थे। यद्यपि अभी तक उनकी अधिक रचनाएं उपलब्ध नहीं हो सकी है, लेकिन फिर भी उन प्राप्त रचनात्रों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि उनकी कोई बड़ी रचना भी मिलनी चाहिए। कवि ने लघु गीत अधिक लिसे हैं । इसका प्रमुख कारण तत्कालीन साहित्यिक वातावरण ही था । अब तक इनकी निम्न कृतियां उपलब्ध हो चुकी हैं --
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१५.
१. वासुपूज्यनी धमाल २. चंदागीत ३. सूखड़ी ४, चतुर्विंशति तीर्थकर लक्षण गीत ५. पद्मावती जात ६. गीत
गीत ८. नेमीश्वरनुशान कल्याणक गीत ६. मादीश्वरनाथनु पञ्चकल्याणक गीत १०, बलभद्र गीत
उक्त कृतियों के प्रतिरिक्त कवि के कुछ पद भी मिल चुके हैं। इन पदों को संख्या आठ है।
ये सभी रचनाएं लघु कृतियां हैं । यद्यपि काव्यत्व, शैली एवं भाषा की दृष्टि से वे उच्चस्तरीय रचनाएं नहीं है, लेकिन तत्कालीन समय जनता की मांग पर ये रचनाए लिखी गई थीं । इसलिए इनमें कवि का काव्य-वैमव एवं सौष्ठव प्रयुक्त होने की अपेक्षा प्रचार का लक्ष्य अधिक था । भाषा की दृष्टि से भी इनका अध्ययन आवश्यक है। राजस्थानी भाषा की ये रचनाएं हैं तथा उसका प्रयोग कवि ने अत्यधिक सावधानी से किया है। गुजराती भाषा का प्रयोग तो स्वमावत: ही हो गया है । कवि की कुछ प्रमुख कृतियों का परिचय निम्न प्रकार है१. चंवागीत
इस गीत में कालिदास के मेघदूत के विरही यक्ष की भांति स्वयं राजुल अपना सन्देश चन्द्रमा के माध्यम से नेमिनाथ के पास भेजती है। सर्व प्रथम चन्द्रमा से अपने उद्देश्य के बारे निम्न शब्दों में वर्णन करती है