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राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
इस प्रकार सात रत्नकीति अपने समय के प्रसिस भट्टारक एवं साहित्य सेवा नि थे । इनके द्वारा रचिन्न पदों की प्रथम पंक्ति निम्न प्रकार है
१. सारङ्ग ऊपर सारङ्ग सोहे सारङ्गत्यासार जो २. सुण रे नेमि सामलीया साहेब क्यों बन छोरी जाय ३. सारङ्ग सजी सारङ्ग पर आये ४. वृषभ जिन सेवो बहु प्रकार ५. सखी री सावन घटाई सतावे ६. नेम तुम कैसे चले गिरिनार ७. कारण कोउ पीया को न जाणे ८. राजुल गेहे नेमी जाय ६. राम सतावे रे मोही रावन । १०. अब गिरी बरज्यो न माने मोरो ११. अगि म कामो माय बरे. १२. राम कहे अवर जया मोही भारी १३. दशानन वीनती कहत होइ दास १४. बरज्यो न माने नयन निठोर १५. झीलते कहा कर्यो यदुनाथ १६. सरदी की रयनि सुन्दर सोहात १७. सुन्दरी सकल सिंगार करे गोरी १८. कहा थे मंडन करु' कजरा नैन भरु १९. सुनो मेरी समनी धन्य या रयनी रे २०. रथडो नोहालती रे पूछति सहे सावन नी बाट २१, सखी को मिलाको नेम नरिंदा २२. सखो री नेम न जानी पीर २३. वंदेहं जनता शरण २४. श्रीराग गावत सुर किन्नरों २५. श्रीराग गावत सारङ्गधरी २६. भाजू पाली प्राय नेम नो साउरी ।