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ब्रह्म रायमल्ल
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हमारे विचार से दोनों भिन्न २ विद्वान हैं, क्योंकि 'मत्तामर स्त्रोत्र वृत्ति' में उन्होंने जो परिचय दिया है, वैसा परिचय अन्य किसी रचना में नहीं मिलता । हूंबद्ध जातीय 'बझा रायमल्ल' ने अपने को अनन्तकीति का शिष्य नहीं माना है श्रीर अपने माता-पिता एवं जाति का उल्लेख किया है । इस प्रकार दोनों ही रायमल्ल भिन्न २ विद्वान हैं । इनमें भिन्नता का ॥क और तथ्य यह है कि मत्तामर स्तोत्र की टीका संचन १६६७ में समाप्त हुई थी जबकि राजस्थानी कवि रायमल्ल ने अपनी सभी रखनानों को संवत् १६३६ तक ही समाप्त कर दिया था। इन ३१ वर्षों में कवि द्वारा एक भी ग्रन्थ नहीं रत्रा जाना भी न्याय संगत मालूम नहीं होता । इस लिए १७वीं शताब्दी में रायमल्ल नाम के दो विद्वान् हए । प्रथम राजस्थानी विद्वान् धे जिसका समय १७वीं शताब्दी का द्वितीय चरण तक सीमित था । दूसरे रायमल्ल' गुजरातो विमान थे और उनका समय १७वीं शताब्दी के दूसरे चरण से प्रारम्भ होता है। यहां हम राजस्थानी सन्त 'ब्रह्म रायमल्ल' की रचनाओं का परिचय दे रहे हैं । आलोच्च रायमल्ल ने जिन हिन्दी रचनामों को निबद्ध किया था, उनके नाम निम्न प्रकार हैं :
१. नेमीदवर रास २. हनमन्त तथा रास ३. प्रद्युम्न रास ४. सुदर्शन रास ५. श्रीपाल रास ६. मविष्यदत्त रास ७. परमहंस चौपई
८. जम्बू स्वामी चौपई । २. निर्दोष सप्तमी कथा १०. प्रादित्यवार कथा २ ११. चिन्तामगि जयमाल' १२. छियालीस लागा १३. चन्द्रगुप्त स्वप्न चौपई
इन रचनाओं का संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है :१. नेमोश्वर रास
यह एक लघु कथा काम है, जो १३९ छन्दों में समाप्त होता है। इस में 'नेमिनाथ स्वामो' के जीवन पर संक्षिप्त प्रकाश डाला गया है । भाषा राजस्थानी novunarnrunnrunnnnnnmanneranmneun nun १. इसकी एक प्रति मन्दिर, संघीजी, जयपुर के शास्त्र भण्डार में सुरक्षित है। २, इसकी भी एक प्रति शास्त्र भण्डार मन्दिर संघीजी में सुरक्षित है।
इसकी एक प्रति दि जैन मन्दिर पाटोदी, जयपुर के शास्त्र भण्डार में
सुरक्षित है। ४. इसकी एक प्रति जयपुर के पार्श्वनाथ मन्दिर के शास्त्र भण्डर में सुर
क्षित है।