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राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
मनाये जाते हैं। नेमिनाथ की बारात बड़ी सजधज के साथ भाती है लेकिन तोरण द्वार के निकट पहुँचने के पूर्व ही नेमिनाथ एक चौक में बहुत से पशुओं को देखते हैं और जब उन्हें सारथी द्वारा यह हम होता है पतियों के लिए एकत्रित किये गए हैं तो उन्हें तत्काल वैराग्य हो जाता है और ये बंधन तोड़ कर गिरनार चले जाते हैं। राजुल को जब उनकी वैराग्य लेने की घटना का मालूम होता है, तो वह घोर विलाप करती है, बेहोश होकर गिर पड़ती है । वह स्वयं भी अपने सब आभूषणों को उतार कर तपस्वी जीवन धारण कर लेती है | रचना के प्रान्त में नेमिनाथ के तपस्वी जीवन का भी अच्छा वर्णन मिलता है ।
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फाग सरस एवं सुन्दर है। कवि के सभी वन श्रनु है और उनमें जीवन है तथा काव्यत्व के दर्शन होते हैं। नेमिनाथ की सुन्दरता का एक वर्शन देखिये
वेलि कमल दल कोमल, सामल वरण शरीर । त्रिभुवनपति त्रिभुवन निलो, नीलो गुण गंभीर ||७|| माननी मोहन जिनवर, दिन दिन देह दिपंत | प्रलंब प्रताप प्रभाकर, मबहर श्री भगवंत ॥८॥
लीला ललित नेमीश्वर, भलवेश्वर उदार । प्रहसित पंकज पंखडी, अखंडी रूपि अपार ||९|| प्रति कोमल गल गंदल, प्रविमल वाणी विशाल । अगं अनोपम निरुपम, मदन निवास ॥१०॥
इसी तरह राजुल के सौन्दयं वर्णन को भी कवि के शब्दों में पढ़िये-
कटिन सुपीन पयोधर, मनोहर अति उतं ।
चंपक वर्णी चंद्राननी, माननी सोहि सुरंग २।१७, ।
हरणी हरस्त्री निज नयणीउ वयरणीय साह सुरंग । दंत सुमंती दीपती, सोहंती सिरवेणी बंघ ॥ १८॥
कनक फेरी जसी गुतली, पातली पदमनी नारि । सतीय शिरोमणि सुन्दरी, मनतरी अवनि मारि ॥ १६ ॥
ज्ञान-विज्ञान विचक्षरणी, सुलक्षणी कोमल काय | दान सुपात्र देखती, पूजती श्री जिनवर पाय ||२०|| राजमती रलीयामणी, सोह्रामणि सुमधुरीय वारिए । मंभर म्योली भामिनी स्वामिनी सोहि सुराणी ।।२१ ।।
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