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राजस्थान का संत :
ए कृतिय
के नायक थे । 'भ० विजयकीति' कब घबराने वाले थे, उन्होंने शम, दम एवं यम की सेना को उनसे भिड़ा दिया । जीयन में पालित महावत उनके ग्रंग रक्षक थे तब फिर किसका साहस था, जो उन्हे पराजित कर सकता था । अन्त में इस लड़ाई में कामदेव बुरी तरह पराजित हुप्रा. और उसे वहां से भागना पड़ा
भागो रे मयण बाई अनंग वेगि रे.थाई। पिसिर मनर मांहि मुकरे ठाम । रीति र पारि लागी मुनि काने वर मागी, दुखि र काटि र जोगी जपई नाम ।।। मयण नाम र फेडी मापणी सेना रे तेड़ी, प्रापइ ध्यानती रेडी यतीय वरो। श्री विजयकीति यति अभिनयो,
गछपति पूरब प्रकट कीनि मुकनिकरो ॥२८॥ .. ३. गुरू छन्द :
यह भो ऐतिहासिक छन्द है जिसमें "म० विजमकीप्ति का' गुरणानुवाद किया गया है । इस छन्द से विजयकीत्ति के माता-पिता का नाम कुअरि एवं गंगासहाय के नामों का प्रथम बार परिचय मिलता है । छन्द में ११ पच है।
४. नेमिनाप छन्द :
२५ पद्यों में निबद्ध इस छन्द में भगवान् नेमिनाथ के पावन जीवन का वर्णन किया गया है । इसकी भाषा भी संस्कृत निष्ठ है। बिवाह में किस प्रकार प्राभूषणों एवं वाद्य मन्त्रों के झब्द हो रहे थे-इसफा एक वर्णन देखिये
तिहां तड़ तड़ई तव लीय ना दिन बलीय भेद भंभाबजाइ, भंफारि रूडि सहित चूडी भेर नादह गज्जद । मण भरगण करती टगण धरती सद्ध बोल्लइ झल्लरी । घुम घुमक करती करण हरती एहज्जि सुन्दरी ।। १८ ॥ तरण तणण टंका नाद सुन्दर तांति मन्वर वणिया । धम धमहं नादि घणण करती घुग्घरी सुहकारीया । मुमुक बोला सदि सोहा एह भुगल सारयं । करण करणण क्रों को नादि वादि सुद्ध सादि रम्मरणं ॥ १९ ॥