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भ० सकलकीति
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कथाओं का संग्रह है । ग्रन्थ की पूरी प्रति उपलब्ध नहीं होने से अभी तक यह निश्चित नहीं हो सका कि भट्टारक सकलकीति ने कितनी व्रत कथाएं लिखी थीं ।
२१. परमात्मराज स्तोत्र: - यह एक लघु स्तोत्र है, जिसमें १६ प हैं । स्तोत्र सुन्दर एवं भावपूर्ण है। इसकी एक प्रति जयपुर के दि० जैन मन्दिर पाटोदी के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है ।
उक्त संस्कृत कृतियों के अतिरिक्त पञ्चपरमेष्ठिपूजा, अष्टाह्निका पूजा, सोलहकाररणपूजा, गणधर वलय पूजा, द्वादशानुप्रक्षा एवं सारचतुविशतिका आदि और कृतियां हैं जो राजस्थान के शास्त्र भण्डारों में उपलब्ध होती है। ये सभी कृतियां जैन समाज में लोकप्रिय रही है तथा उनका पठन-पाठन भी खूब रहा है ।
भ० सकलकीति की उक्त संस्कृत रचनाओं में कवि का पाण्डित्य पष्ट रूप से झलकता है । उनके काव्यों में उसी तरह की शैली, अलंकार, रस एवं छन्दों की परियोजना उपलब्ध होती हैं जो धन्य भारतीय संस्कृत काव्यों में मिलती है। उनके चरित काव्यों के पढ़ने से अच्छा रसास्वादन मिलता है। परित काव्यों के नामक के लोकोत्तर महापुरुष है जो अतिशय पुण्यवान् हैं, जिनका सम्पूर्ण जीवन अत्यधिक पावन है। सभी काव्य शान्त रपर्यवसानी हैं।
काव्य ज्ञान के रामान भ० संकलकीति जैन सिद्धान्त के महान बना थे । उनका मूलाचार प्रदीप, प्रश्नोत्तरश्रावकाचार, सिद्धान्तसार दीपक एवं सत्वाचंसार दीपक तथा कर्मविपाक जैसी रचनाएँ उनके श्रगाध ज्ञान के परिचायक हैं । इनमें जैन सिद्धान्त, आचार शास्त्र एवं तस्वचर्चा के उन गूढ़ रहस्यों का निचोड़ है जो एक महान् विद्वान अपनी रचनाओं में मर सकता है ।
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इसी तरह 'सद्भाषितावलि' उनके सर्वांग ज्ञान का प्रतीक है जिसमें सकल कीर्ति ने जगत के प्राणियों को सुन्दर शिक्षायें भी प्रदान की हैं, जिससे वे अपना आत्म-कल्याण भी करने की ओर अग्रसर हो सकें। वास्तव में वे सभी विपयों के पारगामी विद्वान् थे- ऐसे सन्त विद्वान को पांकर कौन देश गौरवान्वित नहीं होगा ।
राजस्थानी रचनाएं'
सकलक ने हिन्दी में बहुत ही कम रखना निबद्ध की है। इसका प्रमुख कारण संभवतः इनका संस्कृत भाषा की ओर प्रत्यधिक प्रम था। इसके अतिरिक्त जो भी इनकी हिन्दी रचनाएं मिली हैं वे सभी लघु रचनाएं हैं जो केवल भाषा अध्ययन की दृष्टि से ही उल्लेखनीय कही जा सकती हैं। सकलकीर्ति का अधिकांश