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आचार्य सोमकीसिं
३. संवत् १५३६ में अपने शिष्य वीरसेन सूरि के साथ हूँ बेड जातीय भावक भ्रूपा भार्या राज के अनुरोध से चौबोसी की मूर्ति की प्रतिष्ठा करवायी । १
४. संवत् १५४० में भी इन्होंने एक मूत्ति की प्रतिष्ठा करवायी । २
में मंत्र शास्त्र के भी जाता एवं अच्छे साधक थे।' कहा जाता है कि एक बार इन्होंने सुल्तान फिरोजशाह के राज्यकाल में पावागढ में पद्मावती की कृपा से आकाश गमन का चमत्कार दिखलाया था। अपने समय के मुगल सम्राट से भी इनका अच्छा संबंध था । व० श्री कृष्णदास ने अपने सुनिसुव्रत पुराण (र. का. सं. १६८१) मैं सोमकीत्ति के स्तवन में इनके आगे "यवनपतिकर मौजसंपूजितह्नि" विशेषण मोड़ा है ।
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शिष्यगण
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सोमकीति के वैसे तो कितने ही शिष्य थे जो इनके संघ में रहकर धर्म-साधन किया करते थे। लेकिन इन शिष्यों में, यशः कोर्ति, वीरसेन, यमधर आदि का नाम मुख्यतः गिनाया जा सकता है। इनकी मृत्यु के पश्चात् यशःकीति ही भट्टारक बने । ये स्वयं भी विद्वान थे। इसी तरह आचार्य सोमकोति के दूसरे शिष्य वशोषर की मी हिन्दी की कितनी ही रचनाएँ मिलती हैं। इनकी वाणी में जावू था इसलिये मे नहां भी जाते वहीं प्रशंसकों की पंक्ति खड़ी हो जाती थी। संघ में मुनि प्राधिका, ब्रह्मचारी एवं पंडितगण थे जिन्हें धर्म प्रचार एवं श्रात्म-साधना की पूर्ण स्वतन्त्रता ची
बिहार
इन्होंने अपने बिहार से किन २ नगरों, गांवों एवं देशों को पवित्र किया इसक कहीं स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है लेकिन इनकी कुछ रचनाओं में जो रचना
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१. संवत् १५३६ वर्षे वंशाख सुदी १० बुधे श्री काष्टासंधे वागगच्छे नंबी तट गच्छे विद्यागणे भ० श्री भीमसेन तत् पट्टे भट्टारक श्री सोमकीति शिष्य आचार्य श्रीवीरसेनयुक्तं प्रतिष्ठितं हूँ बज जातीय बंघ गोत्रे गांधी भूपा भार्या राज सुत गांधी मना भार्या काऊ सुत रूड़ा भार्या लाडिक संघवी मला केम श्री आदिनाथ चतुर्विंशतिका प्रतिष्ठापिता ।
मंदिर लूणकरणजी पाया जयपुर
२. भट्टारक सम्प्रदाय पृष्ठ संख्या २९३
३.
२९३
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४. प्रशस्ति संग्रह
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