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राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
राजुल समुद्र विजय की लाडली कुमारी थी, लेकिन अब तो उसने भी प्राप्त प्रगीकार कर लिए थे । जब नेमिनाथ तपस्वी जीवन बिताने लगे तो वह क्यों पीछे रहती, उसने भी संयम धारण कर लिया....
समुद्रविजयराइ ला डिलर, अपूरव देस विसालो। नब रस रसियउ नैमि जिरगु, नव रस रहित रसालो ।।७।। तिर गिलास रिण भो नमो. समुन नियमावास। नेमि छलि तिहुयरिंग छलियज, माणिणि मलियउ मारू ।।८।। राजुल द्वेन देइत्रत दिनु रमह, संजम सिरिख सुजाणो। जगु जागइ तव सोवइ, जागह सूतह लोगो। रचना में २३ पद्य हैं, ' अन्तिम पद्य निम्न प्रकार है......., बल्हिं विपक्खणु, सखीय वंघण जाइ । मूल संघ मुख मंडया, पद्ममन्दि सुपसाइ ।
वहि वसंतु जु गावहि, सो सखि रलिय कराई। ६. नेमिश्वर का बारहमासाने
यह एक छोटी सी रचना है, जिसमें नेमिनाथ एवं राजुल के प्रथम १२ महिनों का संक्षिप्त वर्णन दिया हुआ है । वर्णन सुन्दर एवं सरस है, रचना में १२ पद्य हैं। ७. विभिन्न रागों में लिखे हुए आठ पर
कवि के उपलब्ध आठ पद आध्यात्मिक भावों से पूरा बोतप्रोत हैं । पद लम्बे हैं, तथा राग घनासरी, राग गौडी, राग वडस, राग दीपका, राग महड, राग विहागड, तथा राम प्रासावरी में लिखे हुए हैं। राग गोडी वाले पद के अतिरिक्त सभी पदों में कवि ने अपना पूचराज नाम लिखा है। केवल लसी पद में वह नाम दिया है । एक पद में भगवान को फूलमाला चढाने का उल्लेख माया है। उस समय किये गये फूलों का नाम देखिए ।
राइ चंपा, अरू केबडा, लालो, मालवी मरूवा जाइवे कुद मय कंद अरू केवड़ा लालो रेवती बहु मुसकाय ।
गौडो राग काला पद अत्याधिक सुन्दर है,उसे भी पाठकों के एठनाधू अविकस रूप में दिया जा रहा है। WILAWAAAAAAAAAAAAmwamRNAKARMANAMAMMeammmmmmmmmmmmmmar १. इसको एक प्रति महावीर भवन जयपुर के संग्रह में है।
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