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राजस्थान के जन संत-व्यक्तित्व एवं कृतिरष
३. मल्लिनाथ गीत
इस गीत में ९ छन्द हैं जिसमें तीर्थकर मल्लिनाथ के गर्म, जन्म, वैराग्य, ज्ञान एवं निर्वाण महोत्सव का वर्णन किया गया है । रचना का अन्तिम पाठ निम्न प्रकार है
ब्रह्म अशोघर बीनवी हूँ, हवि तह तणु दास रे ।
गिरिपुरय स्वामीय मंडणु, श्री संघ पूरवि पास रे।।९।। ४. नेमिनाय गीत
यह कवि का मेमिनाथ के जीवन पर तीसरा गीत है। पहिले गीतों से यह गीत बड़ा है और वह ६९ पद्मों में पूर्ण होता है। इसमें नेमिनाथ के विवाह की घटना का प्रमुस्व वर्णन है। वर्णन सुन्दर, सरस एवं प्रवाह मुक्त है। राजुलि-नमि के विवाह की तम्यारियां जोर शोर से होने लगी। सभी राजा महाराजाओं को विवाह में सम्मिलित होने के लिये निमन्त्रण पत्र भेजे गये । उत्तर, दक्षिण, पूर्व पश्चिम प्रादि सभी दिशात्रों के राजागरण उस बरात में सम्मिलित हुये । इसे वर्णन को कवि के शब्दों में पहिये:
कु कम पत्री पाठवी रे, शुभ प्रावि अतिसार । दक्षिण मरहटा मालवी रे, कुकरण कन्नड राउ । गूजर मंडस सोरठीयारे, सिन्धु सबाल देश। गोपाचल नु राजाउरे, ढीली मादि नरेस ॥२३॥ मलवारी प्रासु पाड़नेर, स्वरसाणी सवि ईस । वागडी उदक मजकरी रे, लाड़ गउडना वाम ।।२४।।
कवि ने उक्त पद्यों में दिल्ली को डीली' लिखा है 1 १२वीं शताब्दी के अपभ्रश के महाकवि श्रीधर ने भी अपने पास चरिउ में दिल्ली को "दिल्ली' शब्द से सम्बोधित क्रिया था।'
बरातियों के लिये विविध फल्न मंगाये गये तथा अनेक पकवान एवं मिठाइयां मनवायी गई । कवि ने जिन व्यजनों के नाम गिनाये हैं उनमें अधिकांश राजस्थानी मिष्ठाग्न हैं। कवि के शब्दों में इसका आस्वादन कीजिये
१. विषकपरिद सुपसिद्ध कालि, दिल्ली पनि षण कम.बिसालि ।
सबवायी पयाय परगिह, परिवारिए परिवह परिएपहिं ।। .