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राजस्थान के जैन संत व्यक्तित्व एवं कृतित्व
भी विषय को सरस छन्वों में प्रस्तुत करते थे। उन्होंने नेमिनाथ के जीवन पर कितने ही गीत लिखे, लेकिन सभी गीतों में अपनी २ विशेषताएं हैं। उन्होंने राजुल एवं नेमिनाथ को लेकर कुछ शृगार रस प्रधान पद एवं गीत भी लिसे हैं और उनमें इस रस का अच्छा प्रतिपादन किया है। राजुलके सौन्दर्य वर्णनमें वे अपने पूर्व कवियों से कभी पीछे नहीं रहे । उन्होंने राजुलके आभूषणों का एवं बारात के लिए बनने वाले व्यन्जनों का अत्यधिक सुन्दर वर्णन में भी वे पाठकों के हृदय को सहज ही द्रवित कर देते हैं । जब कवि राजुल के शब्दों को दोहसता है, 'नेमजी आवुन धरे घरे' तो पाठकों को नेमिनाथ के विरह से राजुल की क्या मनोदशा हो रही होगी- इसका सहज ही पता चल जाता है।
बलिभद्र रास'-जो उनकी सबसे अच्छी काव्य कृति है-श्री कृष्ण एवं बलराम के सहोदर प्रेम की एक उत्तम कृति है। यह भी एक लघुकाव्य है, जो भाषा एवं शैली की दृष्टि से भी उल्लेखनीय है। यशोधर कदि के काम्यों की एक और विशेषता यह है कि इन कृतियों की भाषा भी अधिक निखरी हुई है। उन पर गुजराती भाषा का प्रभाव कम एवं राजस्थानी का प्रभाव अधिक है । इस तरह यशोघर अपने समम के हिन्दी के प्रच्छे कवि थे ।