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संत कवि यशोधर
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अतिरिक्त इन्होंने सोमकीति के प्रशिष्य भ० यदाःकोर्ति को भी गुरु के रूप में स्मरस किया है । जो संवत् १५७५ के आस पास भट्टारक बने होंगे । इसलिये इनका समय संवत् १५२० से १५९० तक का मान लेना युक्ति युक्त प्रतीत होता है ।
यशोधर की न तक निम्न रचनायें उपलब्ध हो चुकी है किन्तु आशा है कि सागवाड़ा, ईवर आदि स्थानों के जैन ग्रन्थालयों में इनका और भी साहित्य उपलब्ध हो सकता है । यशोधर प्रतिलिपि करने का भी कार्य करते थे। अभी इनके द्वारा लिपिबन नैनो (राजस्थान) के शास्त्र भण्डार में एक गुटका उपलब्ध हुआ है जिसमें कितने ही महत्वपूर्ण पाठों का संकलन दिया हुआ है । कवि के द्वारा निबद्ध सभी सभी रचनायें इस गुटके में सग्रहीत हैं। इसकी लिपि सुन्दर एवं सुपाय है । १, नेमिनाथ गीत
इसमें २२ वें तीर्थंकर नेमिनाथ के जीवन की एक झलक मात्र है। पूरी कथा २८ पद्य में समाप्त होती है। गीत को रचना संवत् १५८९ में सपालपुर (बांसवाड़ा ) में समाप्त की गई थी।
संत पनर एकासहजी सपालपुर सार |
गुण गाया श्री नेमिनाथ जी, नवनिधि श्री संघवार हो स्वामी ।
गीत में राजुल की सुन्दरता का वर्णन करते हुए उसे मृगनयनी, हंसगानी बतलाया है। इसके कानों में झूमके ललाट पर तिलक एवं नाग के समान लटकती हुई उसकी वेशी सुन्दरता में चार चांद लगा रही थीं। इसी वर्णन को कवि के शब्दों में पढ़िये-
रे हंस गमरणीय भृगनमरणीय स्लवण काल शत्रूकती । तप तपिय तिलक ललाट, सुन्दर वेणीय वासुडा लटकती । स्वनिकंत चूड़ीय मुखि वारीय नयन कज्जल सारती 1
मतीय मेगल मास आसो हम बोली राजमतो ॥३॥ गीत की भाषा पर राजस्थानी का अत्यधिक प्रभाव है ।
२. नेमिनाथ गीत
राजुल नभि के जीवन पर यह कवि का दूसरा गीत है । इस गीत में राहुल 'नेमिनाथ को अपने घर बुलाती हुई उनकी घांट जोह रही है। गीत छोटा सा है जिसमें केवल ५ पद्म हैं। गीत की प्रथम पंक्ति निम्न प्रकार है—
नेम जो आवुन घरे घरे
वाटडीयो जो सियामा (ला) इली रे ||