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ब्रह्म बृचराज HEATRE निर्माता बह्म चार हिन्दी साहित्य के प्रतिष्ठित कवि हैं । इनकी एक रचना 'मयण जुज्झ' इतनी अधिक लोकप्रिय रही कि राजस्थान के कितने ही भण्डारों में उसकी प्रतिलिपियां उपलब्ध होती हैं। इनकी सभी कृतियाँ उच्चस्तर की हैं। 'बूचराज' भट्टारक विजयकीति के शिष्य थे । इसलिए उनको प्रशमा में उन्होंने एक 'विनयकोति गीत' लिखा, जिसका उल्लेख हम भ, विजयकीति के परिचय में पहिले ही कर चुके हैं। विजयकीति के अतिरिक्त ये 'भा रत्नकोति' के भी सम्पर्क में रहे थे । इसलिए उनके नाम का उल्लेख भी "भुवनकोति गोत' में किया गया है।
'बूचराज' राजस्थानी विद्वान थे । यद्यपि अभी तक किसी भी कुति में उन्होंने अपने जन्म स्थान एवं माता-पिता आदि का परिचय नहीं दिया है, लेकिन इन रचनात्रों को भाषा के प्रावार पर एवं भ० विजयकीति के शिष्य होने के कारण इन्हें राजस्थानी विद्वान् ही मानना अधिक तर्क संगत होगा । वैसे ये सन्त थे । 'ब्रह्मचारी' पद इन्होंने धारण कर लिया था। इसलिये धर्म प्रचार एवं साहित्य-प्रचार की दृष्टि से ये उत्तरी भारत में बिहार किया करते थे । राजस्थान, पंजाब, देहली एवं गुजरात इनके मुख्य प्रदेश थे। संवत् १५९१ में ये हिसार में थे और उस वर्ष वहीं चातुर्मास किया था। इसलिए १५६ की भादशा शुक्ला पंचमी के दिन इन्होंने "संतोष जय तिलक" को समाप्त किया था। संवत् १५८२ में 2 चम्पावती (चाटसू) में और इस वर्ष फाल्गुन सुदी १४ के दिन इन्हें 'सम्यकस्त्र कौमुदी' की प्रतिलिपि भेंट स्वरूप प्रदान की गयी थी। २
१. सुर तरु संघ बालिज चितामणि बुहिए दुहि ।
महो धरि धरि ए पंच सबद वाजहि उछरंगिहिए । गावहि ए फामणि मधुर सरे अति मधुर सरि गावति कामणि । जिणहं मन्दिर अवही अष्ट प्रकार हि करहि पूजा कुसम मास दाबह ।। बूचराज भणि श्री रस्नकोति पाटि उदयोसह गुरो । श्री भुवनकीत्ति मासीरवादहि संघ कलियो सुरतरी॥
-लेखक द्वारा सम्पादित राजस्थान के जन
शास्त्र भण्डारों की प्राय सूची चतुथं भाग २. "संवत् १५८२ फाल्गुन मुषि १४ शुभ दिने"..........'चंपावती नगरे........ एतान इद शास्त्र कौमुवीं लिखाप्य कर्मक्षय तिमिरा ब्रह्म चाय दत्त ।।
-लेखक द्वारा संपादित प्रशास्ति संग्रह-५ ६३.