________________
मट्टारका ज्ञानभूषण
आहे आयु कमल दल सम चंचल चपन शरीर। पौवन धन इव अथिर फरम जिम करतल नीर ।।१६६।। आहे भोग वियोग समनित रोग तरगू पर अंग। मोह महा मुनि निदित निदित नारीय संग ।।१६७३ माहे छेदन भेदन वेदन दीठीय नरग मभारि । भामिनी मोग तणइ फलि सउ किम वांछन नारि ।।
इस प्रकार 'यादिनाथ फाग' हिन्दी की एक श्रेष्ठ रचना है। इसकी भाषा को हम 'गुजराती प्रभावित राजस्थानी का नाम दे सकते हैं ।
रचनाकाल:- यद्यपि 'ज्ञान भूपण' ने इस रचना का कोई समय नहीं दिया है, फिर भी यह संवत् १५६० पूर्व की रचना है-इसमें कोई सन्देह नहीं है। क्योंकि तत्वज्ञानतरंगिणी ( संवत् १५६० ) म० ज्ञानभूषण की अन्तिम रचना गिनी जाती है ।
उपलब्धि स्याम:-'ज्ञान भूषण' की यह रचना लोकप्रिय रचना है । इसलिए राजस्थान के कितने ही शास्त्र-भण्डारों में इसकी प्रतियां मिलती हैं। पामेर. शास्त्र भपहार में इसकी एक प्रति सुरक्षित है :
५. पोसह रास :
यह यद्यपि व्रत-विधान के महात्म्य पर आधारित रास है, लेकिन भाषा एवं शैली की दृष्टि से इसमें रासक कान्य जसी सरसता एवं मधुरता आ गयी है । 'पोषह रास' के कर्ता के सम्बन्ध में विभिन्न मत हैं । पं. 'परमानन्द जी एवं डॉ. प्रेमसागर जी के मतानुसार वह कृति म, वीरचन्द के शिष्य भ. ज्ञानभूषशा की होनी चाहिए; जब कि स्वयं कृति में इस सम्बन्ध में कोई उल्लेख नहीं मिलता। कवि ने कृति के अन्त में अपने नाम का निम्न प्रकार उल्लेख किया है:
वारि रमणिय मुगतिज सम अनुप सुल अनुभवह । भव म कारि पुनरपि न आवड इह व फलजस गमइ । ते नर पोसह कान भावः एशि परि पोमह धरज नर नारि सुजण । जान भूषण गृह इम भराइ, ने नर करइ बरबाण ॥११॥
१. डॉ प्रेमसागर जी ने इस कृति का जो संवत् १५५१ रचनाकाल बतलाया है वह संभवतः सही नहीं है । जिस पद्य को उन्होंने रचनाकाल वाला पद्य माना है। यह तो उसकी श्लोक संस्था वाला पधे है
हिन्वी जैन भक्तिकाम्य और कवि : पृष्ठ सं० ७५