________________
आचार्य सोमकीति
पनरहसि क्षठार मास आषाढह जार, अकवार पंखसी, ब्रहुल परमह बखा । मुस्लाभ नक्षत्र श्री सोझोत्र पुरकरि सत्तासी वर-पाट तणु भवम जिरिए परि || जिनवर सुपास भवन कीउ, श्री सोमकीर्ति बहुमावरि । जयवंत रवि तलि विस्तर, श्री शान्तिनाथ सुपसाउ करि ॥
₹
२. यशोधर रास :
यह कवि की दूसरी बड़ी रचना है जो एक प्रकार से प्रबन्ध काव्य है । इस रचना के सम्बन्ध में अभी तक किसी विद्यान् ने उल्लेख नहीं किया है। इसलिए यशोधर रास कवि की अलभ्य कृतियों में से दूसरी रचना है। सोमकीति ने संस्कृत में भी शोवर चरित्र को रचना की थी जिसे उन्होंने संवत् १५३६ में पु किया था। 'यशोधररास' संभवतः इसके बाद की रचना है जो इन्होने अपने हिन्दी, राजस्थानी गुजराती भाषा भाषा पाठकों के लिए मिब को थी ।
"प्राचार्य सोमकीर्ति" ते 'यशोधर रास' को गुडलीनगर के शीतलनाथ स्वामी के मन्दिर में कार्तिक सुदी प्रतिपदा को समाप्त किया था ।
सोधीय एहज रास करीय सावली घापिए । कातीए उजलि पाखि पडिवा बुंधचारि कीउए । सीए नाथि प्रासादिकुलीनयर सोहम ए fafe fa ए श्री पासा हो जो निति श्रीसंघ भरिए । श्री गुरु चरण पसाउ श्री सोमकीरति सूरि भए ।
'शोधर रास' एक प्रबन्ध काव्य है, जिसमें राजा यशोधर के जीवन का मुख्यतः वर्णन है । सारा काव्य दश कालों में विभक्त है। ये ढ़ालें एक प्रकार से सर्गे का काम देती हैं । कवि ने यशोधर की जीवन कथा सीधी प्रारम्भ न करके साधु युगल से कहलायी है, जिसे सुनकर राजा मारिदत्त स्वयं भी हिंसक जीवन को छोड़कर साधु की दीक्षा धारण कर लेता है एवं चंडमार देवी का प्रमुख उपासक मी हिंसावृत्ति को छोड़कर अहिंसक जीवन व्यतीत करता है । 'रास' की समूची कथा अहिंसा को प्रतिपादित करने के लिये कही गई है, किन्तु इसके अतिरिक्त रास में अन्य वर्णन भी अच्छे मिलते हैं। 'रास' में एक वरांत देखिए- जिसमें बसन्त ऋतु आने पर वन में कोयल कूंज उठती है एवं मोरों की झंकार सुनाई देती है
SALBA