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प्राचार्य सोमकोति
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रस नयन समेते बाण युक्त न पन्द्र (१५२६) गतवति सति नूनं विक्रमस्यद काले प्रतिपदि धवला यो माघमासस्य सोमे
हरिमदिनममोझे निर्मितो ग्रन्थ एषः ॥७१।। (२) प्रद्युम्नचरित्र
यह हनका दूसरा प्रबन्ध काव्य है जिसमें श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्य म्न का जीवनचरित अक्ति है । प्रध म्न का जीवन जैनाचार्यों को अत्यधिक प्राकर्षित करता रहा है। अब तक विभिन्न भाषानों में लिखी हुई प्रद्युम्न के जीवन पर २५ से भी अधिक रचनायें मिलती हैं । प्रशुम्म चरित सुन्दर काव्य है जो १६ सगों में विभक्त है । 'इसका रचना काल सं. १५३१ पोष सुदी १३ बुधबार है।
संवत्सरे सत्तिथिसंक्षके वै वर्षेत्र त्रिशंकयुते (१५३१) पवित्रे
विनिमितं पोषसुदेश्च तस्यां त्रयोदशीष बुधवारयुक्ताः ॥१६९ (1) यशोधर चरित्र
कवि 'यशोधर' के जीवन से संभवतः बहुत प्रभावित थे इसलिए इन्होंने संस्कृत एवं हिन्दी दोनों में हो यशोधर के जीवन का घशोगान गाया है। अशोषर चरित्र पाठ सर्गों का कान्य है: कार में इसे संवत् १५३६ में गोळिली (मारवाड) नगर में निबद्ध किया था। . . ... .. .
नंदीतटाण्यगच्छे बैशे श्रीरामसेनदेवस्य जालो गुरणार्णकश्च श्रीमान् श्रीमीमसेनेति ॥६॥ निमित' तम्य शिष्येण श्री यशीघरसंज्ञकं । श्रीसोमीतिमुनिना विशोव्यऽवीयता बुधाः ॥६॥ यपं पत्रिशासस्ये तिथि पर गाना युनः संवत्सरे (१५३६) वै । पंचम्यां पोषकृष्गो दिनकरदिवसे चोत्तरास्य हि चंद्र । गोढिल्या : मेंदपाटे जिनवरभवने गीतलेन्द्ररमो । सोमादिकीर्तिनेदं नृपवरचरितं निमितं शुद्धभक्त्या ॥
। राजस्थानी रचनायें
११) गुविलि
ग्रह एक ऐतिहासिक रचना है जिसमें कवि ने अपने संघ के पूर्वाचायों का संक्षिप्त घाम दिया है । यह गुर्वावलि संस्कृत एवं हिन्दी दोनों भाषाओं में लिखी हुई