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भट्टारक ज्ञानभूषण
संवत् १५३५ में इन्होंने दो प्रतिष्ठाओं में भाग लिया जिसमें एक लेख जयपुर के छाबड़ों के मंदिर में तथा दूसरा लेख उदयपुर के मंदिर में मिलता है । संवत् १५४० में बड जातीय श्रावक लाया एवं उसके परिवार ने इन्हीं के उपदेश से प्रादिनाथ स्वामी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवायी थी । इसके एक वर्ष पश्चात् ही नागदा जाति के श्रावक श्राविकाओं ने एक नवीन प्रतिष्ठा का आयोजन किया जिल में भ, जानभुषण प्रमुख अतिथि थे । इस समय की प्रतिष्ठापित चन्द्रप्रभ स्वामी की एक प्रतिमा डूगरपुर के एक प्राचीन मन्दिर में विराजमान है। इसके पश्चात् तो प्रतिष्ठा महोत्सवों की घूम सी मच गई । संवत १५४३, ४४ एवं संवत् १५४५ में विविध प्रतिष्ठा समारोह सम्पन्न हुए । १५५२ में डूगरपुर में एक वृहद् आयोजन हुआ जिसमें विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम सम्पन्न हुये । इसी समय की प्रतिष्ठापित नेमिनाथ •iww.nari.VE.
INEstarahamannamruareranam १. संवत् १५३५ वर्षे माघ सुदी ५ गुरौ श्री मलसंघे भट्टारक श्री भुवन
कोसि स० भ० श्री ज्ञानभूषण गुरूपदेशात "गोत्रे सा, माला भा० प्रापु पुत्र संघपति सं० गोइन्द भार्या राजलदे भ्रातृ सं० भोजा भा० लीलन सुत जीवा जोगा जिवास सांसा सुरताण एतः मष्टप्रासिहायं चतुर्विशतिका प्रगति । : २. संवत् १५३५ श्री मूलसंघे भ. श्री भुवनकीति तर भ० श्री शानभूषण
गुरूपदेशात् श्रेष्टि हासा भार्या हासले सुप्त समधरा भार्यापामी सुत नाथा भार्या सारू माता गोआ भार्या पांचू प्रा० महिराज भ्रा० जेसा रूपा
प्रणमंति। ३. संवत् १५४० वर्षे वैशाख सुवी ११ गुरौ थी मूलसंघे भ० भी सकलकीप्ति
तत्प? भ० भुक्नकोत्ति तत्प? भ० शानभूषण गुरूपदेशात् हूँवर शातीप सा० लाला भार्या माल्हणवे मुत हीरा भाई हर भ्रा, लाला रामति तस् पुत्र द्वो० धन्ना, अना राजा विरुषा साहा नेसा वेणा भारसव वाछा
राहूया अभय कुमार एते श्री आदिनायं प्रणमति । ४. संधत् १५४१ व साख सुदी ३ सोमे श्री मूलसंघे भ० जानभूषण
गुरूपदेशात् नागदा शातीय पंथवाल गोत्रे सा. वाछा भार्या जसभी सुत हेपाल भार्या गुरी सुत सिहिसा भार्या चमफ एते चन्द्रप्रभ निस्पं प्रणमंति।