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अजस्थान संत-स्व एवं कृतित्व
और इसी वर्ष इन्होंने अपने पूर्वजों का इतिहास लिपिबद्ध किया था '। श्री विश्वावर जोहरापुरकर ने अपने भट्टारक सम्प्रदाय में इनका समय संवत १५२६ से १५४० तक का भट्टारक काल दिया है । वह इस पट्टावली से मेल नहीं खाता। संभवतः उन्होंने यह समय इनकी संस्कृत रचना सप्तम्यसनकथा के आधार पर दे दिया मालूम देता है क्योंकि कवि ने इस रचना को सं० १५२६ में समाप्त किया था । इनकी तीन संस्कृत रचनाओं में से यह प्रथम रचना है ।
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सोमकीर्ति यद्यपि मट्टारक थे लेकिन ये अपने नाम के पूर्व आचार्य लिखना करते थे और उनके द्वारा
अधिक पसन्द करते थे। ये प्रतिष्ठाचार्य का कार्य भी सम्पन्न प्रतिष्ठाओं का उल्लेख निम्न प्रकार मिलता है
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१. संवत १५२७ वैशाख सुदि ५ की इन्होंने वीरसेन के साथ नरसिंह एवं उसकी मार्या सापडिया के द्वारा आदिनाथ स्वामी की मूर्ति की स्थापना करवायी थी t
२. संवत् १५३२ में वीरसेन सूरि के साथ शीतलनाथ की मूर्ति स्थापित की गयी थी 13
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१. श्री भीमसेन पट्टाधरण गछ सरोमणि कुल तिलौ । जागति सुजाण जाए नर श्री सोमकीति मुनिवर भली ॥ पनरहसि प्रयार मास श्राषाढह जाणु ।
अकवार पचमी बहुल परूयह बखार ॥
पुब्बा भद्द नक्षत्र श्री सोझोत्रिपुरवरि ।
सन्यासी वर पाठ लगु प्रबन्ध जिरि परि || जिनवर सुपास भवति कोउ, श्री सोमकीत्ति बहु भाव धरि । जयवंत उचितलि विस्तरू श्री शांतिनाथ सुपताउ करि ॥
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२. संवत १५२७ वर्ष वैशाख दुधी ५ गुरौ श्री काष्ठासं नंदतर गच्छे विश्वागणे भट्टारक श्री सोमकीति आचार्य श्री वीरसेन युगवं प्रतिष्ठिता । नरसिंह राज्ञा मार्या सांपडमा गोत्र 'लाखा भार्या मांकू देल्हा भार्या मानू पुत्र बना सा. कान्हा देल्हा फेन श्री आदिनाथ बिम्ब कासपिता ।
सिरमौरियों का मविर जयपुर ।
३. भट्टारक सम्प्रदाय पृष्ठ संख्या - २९३