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राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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विशाल नेत्रा तस राखी जाणि रूप तो निधान । मंद करे ते अति घणो, बांध बहुमान ॥३॥
७. परमहंस राम
यह एक आध्यात्मिक रूपक रास है जिसमें परमहंस राजा नायक है तथा चेतना नाम राखी नायिका है । माया रानी के वश होकर वह अपने शुद्ध स्वरूप को भूल जाता है और काया नगरी में रहने लगता है । मन उसका मंत्री है जिसके प्रवृत्ति एवं निवृत्ति यह दो स्त्रियां है। मोह प्रतिनायक है। रचना बड़ी सुन्दर है । इसकी एक प्रति उदयपुर के खण्डेलवाल मंदिर के शास्त्र भंडार में संग्रहीत है । इसके भाव एवं भाषा का एक उदाहरण देखिये-
पाषाण मांहि मोनो जिम होई, गोरस मांहि जिमि घृत होई । तिल सारे तल बसे जिमि भंग, तिम शरीर भात्मा अभंग ॥ काष्ठ मांहि आगिनि जिमि होई, कुसुम परिमल मांहि नेह । नीर जलद सीत जिमि नीर, तेम आत्मा बसे जगत सरीर ॥ ८. अजितनाथ रास
इस रास में दूसरे तीर्थ कर अजित नाथ का जीवन वणित है। रचना लघु है किन्तु सुन्दर एवं मधुर है। इसकी कितनी ही प्रतियाँ उदयपुर, ऋषभदेव डूंगरपुर आदि स्थानों के शास्त्र भण्डारों में संग्रहीत है। रास की भाषा का एक उदाहरण देखिये—
श्री सकलकीति गुरु प्रमरणमोने, मुनि भुवनकीरति अवतार | रास कियो में निरमलो, अजित जिराँसर सार ।
इगुइ जे सांभले मनि घरि अविचल माव 1 ते घर रिधि घर तणो पाये शिवपुर ग्राम । जिशा तास अति निरमलो, मवि भबि देउ महू सार ॥ ब्रह्म जिरणयास इम वीनवे, श्री जिराबर मुगति दातार ॥
६. आरती छंद
कवि ने छोटी बड़ी रचनाओं के अतिरिक्त कुछ सुन्दर पद्य भी लिखे हैं । इस ग्रंथ में इन्होंने भगवान के प्रागे जब देव एवं देवियाँ नृत्य करती हुई स्तवन करती हैं उसका सुन्दर दृष्य अपने शब्दों में चित्रित किया है। एक उदाहरण देखिये
ना संति कलिमल मंत्र निरमल, इंद्र आरती उतारए । जिरावरह स्वामी मुगतिगामी, दुख समल निवारए ||४||