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राजस्थान जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
ध्यान बली कर्म क्षय करी, श्रीपाल गए बयतार ।
श्री सकलकीर्ति पाए प्रणमीनि, ब्रह्म जिरावास भरिणसार ||४४८ || इति श्रीपाल मुनिस्वररास संपूर्णं ।
२०. जम्बूस्वामी रास
इसमें २४वें तीर्थंकर भगवान महावीर के पश्चात् होने वाले अन्तिम केवली के जम्बूस्वामी के जीवन का वर्णन किया गया है । यह रास भी उदयपुर (राज) खण्डेलवाल दि. जैन मन्दिर के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है। इसमें १००५ पद्य हैं । जो विभिन्न छन्दों में विभक्त हैं। कृति के दो उदाहरण देखिएढाल रासनो -
कनकबती कहि निरमलीए, कंत न जारिंग भेद तु 1 अधिक सुखनि काररिए, सिद्धा त वयु मेघ देखी फरीए, परलोक मुख कारण, चोखट अनरोबी करोए, सरस कमल छोटी करीए,
अन्तिम छन्द
करि छेद तु ॥ ६७९ ।। फोडि घडा गमार तु । कंत छोड़ संसार तु ॥ ६८ घरि घरि मारिण दीन तु ।
कोरडी चारि अगली होन तु ॥१६८१ ।।
रास कोमि प्रतिहि विसाल
जंबुकुमार मुनि निर्मल, अन्तिम केवली सार मनोहार |
अनेक कथामि वररणवी, भवीया तरणी गुणवंत जिनदर ।
पढ़ि गुणि सांभलि, तेस घरि रिधि अनंत
ब्रह्मजिनदास एणी परभरिंण, मुकति रमणी होइ त ।। १००५ ।।
२१. भद्रबाहु रास
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भगवान महावीर के पश्चात होने वाले भद्रबाहु स्वामी अन्तिम श्रुत केवली भद्रबाहु का थे सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ( ई. पू. ३ री शताब्दि उनके शिष्य थे प्रस्तुत रास में संक्षिप्त वर्णन है। इस रास की प्रति अग्रवाल दि. जैन मन्दिर उदयपुर के वस्त्र मंडार में संग्रहीत है। रास का बादि अन्त भाग निम्न प्रकार है
आदि भाग
चन्द्रप्रभजिनं चन्द्रप्रभजिनं न ते सार |
तीर्थंकर जो आठमो वांछीत फल बहु दान दातार ।
सार स्वामिनी वलि तबु, जोम बुद्धि सार हज वेगि मांगउ |
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गणधर स्वामी नमसकरु श्री सकल कीरति गुणसार तास चरण प्रणमीनि, रास करु सविचार ||