________________
राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
क्रोष मोहबि खंडणु गुण, तणु 'मंगई कहीइ । ते मुनिवर तरणु निमंमु रास को मि सार ॥
ब्रह्म जिरगदास एणी परिभणि, गाइ पुन्य अपार ॥३३७।। १६. अविका रास
इसमें अबिका देवी का चरित्र चित्रित किया गया है। छन्दों की संख्या १५८ है । कवि ने मंगलाचरण में नेमिनाथ स्वामो को नमस्कार किया है । इस रास में किसी गुरु का स्मरण नहीं किया गया है । बीमती छंदसोरठ देस मझार जूनागढ जोगि जाणीहए।
गिरिनारि पर्वत वनि सिद्ध क्षेष बखाणिडए ॥ १७, नागभी रास
इस रास में रात्रि भोजन को लेकर नागधी की कथा का वर्णन किया गया है। रास को एक प्रति उदयपुर के शास्त्र भण्डार के बड़े गुटके में संग्रहीत है। कवि ने अपने अन्य रासक काल्यों के समान इसकी भी रचना की है। इसमें २५३ पद्य हैं । रास का अन्तिम भाग लिए---
काल घणु सुख भोगव्या, पछि ऊपनु वैरागतु । ज्ञानसागर गुरु पामिया ए, सर्ग मुक्ति तणा भावतु । दोहा--तेह गुरु प्रणमी करी, लीघु संयम भार ।
राजा सहित सोहामणु, पंच महाबत सार ।।२४६।। नागत्री श्रायिका कही, राणी सहित सुजाण । अजिकर हवी अति निर्मली, धमनी मनी स्वाणि ।।२५।। तप जप संयम निमंतु, पाल्यु अति गुणवंत । सर्ग पुहतां रुअडां, ध्यान वसि जयवंत ।।२५१।। नारी लिंग छेदो करी, नागश्री गुणमाल । सर्ग भुवनदेव हचु, रुधिवंत धिमाल ।।२५२।। कीरति गुम पाए प्रणमीनि, मुनि भुवाकीरति अवतार ।
ब्रह्म जिनदास इस वीनधि, मन श्रोत फल पामि ॥२५३।। इति नागश्री राम । सं. १६१६ पोप सुदि ३ रयो ।
ब्रह्म श्री धना केन लिखित ।। १८. रविवत कथा
__ प्रस्तुत लघुकथा जति में जिनदास ने रविवार व्रत के महात्म्य का वर्णन किया है । इसकी भाषा अन्य कृतियों की अपेक्षा सरल एवं सुबोध है। इसकी एक प्रति डूंगरपुर के शास्त्र मंडार के एक गुटका में संग्रहीत है। इसमें.४६ पद्य हैं ।