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राजस्थान के जन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
रास में दूहा, चौपाई, भासा तथा बस्तुबन्ध छंद का प्रयोग हुआ है । भाषा एवं शैली दोनों ही अच्छी हैं। एक उदाहरण देखिये
वहा
अज्ञान मिथ्यात दुर घरो, तप्ला प्रागलि विचार | अवर मिथ्या तणा, पंचम काल प्रपार ॥१॥ ६म जारिण निश्तो करी, छोडु मिथ्यात अपार । समकिल गालो निरमलो, जिम पामो भव पार ।।२।। परीक्षा कीजि हवड़ी, देव धरम गुरु चंग । निदोष सासरण तपो, त्रिभुवन माहि अभंग ||३॥ ते आराघु नि रमलो, पवन नेग मुणवंत । तिमि सुख पायो अति घणों, मुगति तणो जयवंत ॥४॥ जीव आगि घृणं भन्यो, सत्य मारग विण थोट ।
ते मारग ता आपरो, जिम दुख जाइ घन पार ||५|| रास का अन्तिम भाग निम्न प्रकार है
थी सकलकीरति गुरु प्ररण मीनि, मुनि भूवन कीरति अवतार | ग्राहा जिनदास भरि। बडो, रास कियो सविचार ।। धर्म परीक्षा रारा निरमलो, धर्ममतणो निधान । पढि मुरिग जे संमलि. तेह उपजि मतिज्ञान ।२।।
१२. ज्येष्ठजिनयर रास
यह एक लघु कया कृति है जिसमें सोमा' ने प्रतिदिन एक घड़ा पानी जिन मदिर में जाकरः रखने की अपनी प्रतिज्ञा किन २ परिस्थितियों में भी राफलतापूर्वक निभायो-इसका वर्णन दिया हुआ है । भाषा सरल है तथा पद्यों की संख्या १२० है।
सोमा मनि उपनु तव भाव, एक नीम देउ तमे करी पसाइ । एक कुभ जिनवर भवन उतंग, दिन प्रति कि सदमन रंग ॥ एबु नीम लीवुमन माह, एए: कुंभ मेहलि मन माह ।
निर्मन नीर भरी करी चंग, दिन प्रति जिनवर भुवन उतंग ॥ १३. श्रेणिक रास
इसमें राजा श्रीषिक के जीवन का वर्णन किया गया है राजा श्रेणिक मगध के सम्राट थे तथा भगवान महावीर के मुख्य उपासक थे। इसमें दोहा, चौपाई छंद का अधिक प्रयोग हुआ है । भाषा भी सरल एवं सुन्दर है । एक उदाहरण देखिये