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राजस्थान के जैन संव-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
बाल गोपाल जिम पढे गुरणे, जाणे बहु भेद । जिन सासण गुण नीरमला, मिथ्यामत छेद ॥२॥ कठिन नारेल दीजे बालक हाथ, ते स्याद न जाणे । छोल्यां केला दाख दीजे, ते गुण बहु माने ॥३॥ तिम ए पादपुराण सार, देस भाषा बखाणू । प्रगुण गुण जिम विस्तरे, जिन सासन बारा ॥४॥
ब्रह्म जिनदास ने रचना में अपने गुरु सकलकत्ति एवं मुनि भुवन कीत्ति का सादर उल्लेख किया है । जो निम्न प्रकार है
श्री सकलपी : मानी, गी बनसीसी अवतार ।
ब्रह्म जिनदास कहे नीमलो रास कीयो मे सार ।। २. हरिवंश पुराण
इसका दूसरा नाम नेमिनाय रास भी है । कवि ने पहिले जो संस्कृत में हरिवंश पुराण निबद्ध किया था उसी पुराण के कथानक को फिरसे उन्होंने राजस्थानी भाषा में और काव्य रूप में निबद्ध कर दिया । कवि के समय में जन साधारण की जो प्रान्तीय भाषाओं में रुचि बढ़ रही थी उसी के परिणाम स्वरूप यह रचना हमारे मामने आयी। यह अधि की बड़ी रचनाओं में से है। इसकी एक प्रति संवत् १६५३ में लिखी हुई उदयपुर के सण्डेलवाल मन्दिर के शास्त्र मण्डार में सग्रहीत है । इस प्रति में १११" " आकार वाले २३० पत्र हैं । हरिवंश पुराण की रचना संवत् १५२० में समाप्त हुई थी और संभवतः यह उनकी अन्तिम रचना मालूम देती है।
संवत १५ (पन्द्रह) यीसोत्तरा विशाखा नक्षत्र विशाल । शुक्ल पक्ष चौदसि दिना रास कियो गुणमाल ।।
रचना मग्दर है और इनकी भाषा को हम राजस्थानी भाषा कह सकते हैं । इसमें कवि ने परिमार्जित भाषा का प्रयोग किया है और इसमें निखरे हुये काव्य के दर्शन होते हैं । यद्यपि 'रचना का नाम पुराण दिया हुआ है लेकिन इसे महा काव्य की संज्ञा दी जा सकती है। ३. राम सीता रास
राम के जीवन पर राजस्थानी भाषा को संमबतः यह सबसे बड़ी रचना है जिसे दूसरे रूप में रामायण कहा जा सकता है । कवि ने जो राम चरित्र संस्कृत में लिखा था सभी का स्थानक इस काम में है । लेकिन यह कवि की स्वतंत्र रचना है संस्कृत कृति का अनुवाद मात्र नहीं है । संवत् १७२८ में देजल ग्राम में