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ब्रह्म जिनदास
२. हरिवंश पुराण
मह कवि की संस्कृत भाषा में निबद्ध दूसरी बड़ी रचना है जिसमें ४० सर्ग हैं। श्रीकृष्ण एवं २२ वें तीर्थंकर नेमिनाथ हरिवशे में ही उत्पन्न हुये थे इसलिये उनका एवं प्रद्युम्न, पांडव, कौरवों का इस पुराण में वर्णन किया गया है । इसे जैन महाभारत कह सकते हैं। इसकी वर्णन शैली भी महाभारत के समान है किन्तु स्थानर पर ममें कालान्तले गो दर्शा होने ! महाका श्री कृष्ण एवं भगवान नेमिनाथ का इस में सम्पूर्ण जीवन बरिणत है और इन्हीं के जीवन प्रसंग में कौरव-पाण्डवों का अच्छा वर्णन मिलता है। राम कथा एवं श्री कृष्ण कथा को जन प्राचार्यों ने जिस सुन्दरता एवं मानवीय आधार पर प्रस्तुत किया है उसे जैन पुराण एवं काव्यों में अच्छी तरह देखा जा सकता है । ब्रह्म जिनदास के हरिवशं पुराण का स्थान आचार्य जिनसेन द्वारा निबद्ध हरिवशं पुराण से बाद का है। ३. राम चरित्र
८३ सर्गों में विभक्त यह रचना जिनदास की सबसे बड़ी रचना है । इसकी श्लोक संख्या १५००० है। रविषेरणाचार्य के पुमपुराण के अाधार पर की गई इस रचना का नाम पयपुराण (जैन रामायण) मी प्रसिद्ध है । इस काव्य में भगवान राम के पावन चरित्र का जिस सुन्दर ढंग से वर्णन किया गया है उससे कवि की विद्वता एवं वर्णन चातुर्य का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। काश्य की भाषा सरल है एवं वह सुन्दर वाली में लिखा हुआ है।
हिन्दी रचनाएं १. आदिनाथ पुराण
यह फवि की बड़ी रचनाओं में है । इसमें प्रथम तीर्थ कर ऋषभदेव एवं बाहुबलि आदि महापुरुषों के जीवन का वर्णन है। साथ ही आदिनाथ के पूर्व भवों का, भोगभूमियों की सुख समृद्धि, कुलकरों को उत्पत्ति एवं उनके द्वारा विभिन्न रामयों में आवश्यक निर्देशन, कर्मभूमियों का प्रारम्भ प्रादि का भी अच्छा वर्णन मिलता है। पुराण में गुजराती भाषा के शब्दों की बहुलता है। कवि ने ग्रंथ के प्रारम्भ में रचना संस्कृत के स्थान पर देश भाषा में क्यों की गई इसका मुन्दर उत्तर दिया है। उन्होंने कहा है कि जिस प्रकार नारियल कठिन होने से बालक उसका स्वाद बिना छीले) नहीं जान सकता तथा दाख केला आदि का बिना छीले ही अच्छी तरह से स्वाद लिया जा सकता है वही दशा देशी भाषा में निबद्ध काव्य की भी है
भवियण मावे सुणो आज, रास कहो मनोहार । आदिपुराण जोई करी, कवित करू मनोहार ॥१॥