________________
२१
भ० सकलकीत
दिया । इन कृतियों में जैन धर्म के प्रसिद्ध सिद्धान्तों जैसे सात तत्व. नव पदार्थ, अष्टकमं, पंच ज्ञान, गुणस्थान, मार्गणा आदि का अच्छा विवेचन हुआ है। उन्होंने साबुअों के लिए 'मूलाचार - प्रदीप' लिखा, तो गृहस्थों के लिए प्रश्नोत्तर के रूप में प्रश्नोत्तरोपासकाचार लिखकर जीवन को मर्यादित एवं प्रनुशासित करने का प्रयास किया । वास्तव में उन्होंने जिन २ मर्यादानों का परिपालन जीवन में आवश्यक बताया वे उनके शिष्यों के जीवन में अच्छी तरह उतरी। क्योंकि वे स्वयं पहिले मुनि अवस्था में रहे थे । उसी रूप में उन्होंने अध्ययन किया और उसी रूप में कुछ वर्षो तक जन-जागरण के लिए स्थान-स्थान पर बिहार भी किया ।
'व्रत कथा कोष' के माध्यम से इन्होंने भावकों के जीवन को नियमित एवं संयमित बनाने का प्रयास किया और उन्हें व्रत पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया । इसी तरह स्वाध्याय के प्रति जन-जागृति पैदा करने के लिए उन्होंने पहिले तो आदिपुराण एवं उत्तरपुराण लिखा और फिर इन्हीं दो कृतियों को संक्षिप्त कर पुराणसारसंग्रह निबद्ध किया। किसी भी विषय को संक्षिप्त अथवा विस्तृत वारने की करना उनको अच्छी तरह छाती थी।
'भट्टारक सुकलकीति' ने यद्यपि हिन्दी में अधिक एवं बड़ी रचनाएँ नहीं लिखीं, लेकिन जो भी ७ कुतियां उनकी अब तक उपलब्ध हुई हैं, उनसे उनका साहित्यिक एवं भाषा शास्त्रीय ज्ञान का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। उनका 'सारसीग्रामशिरास' एवं 'शान्तिनाथ फागु' हिन्दी की अच्छी कृतियां हैं। जिनमें विषय का अच्छा प्रतिपादन हुआ है। नमीश्वर गीत एवं मुक्तावति गीत उनको संगीत प्रधान रचना है। जिनका संगीत के माध्यम से जन साधारण को जाग्रत रखने का प्रमुख उद्देश्य था ।