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राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
९. सुदर्शन चरित्र इस प्रबन्ध काव्य में सेठ सुदर्शन के जीवन का वर्णन किया गया है जो पाठ परिच्छेदों में पूर्ण होता है। काब्य की भाषा सुन्दर एवं प्रभावयुक्त है।
१०. सुकुमाल बसि...यह एक संध्या हा बा
सा भूमि सकुमाल के जीवन का पूर्व भव सहित वर्णन किया गया है। पूर्व भव में हुप्रा और भाष . किस प्रकार अगले जीवन में भी चलता रहता है इसका वर्णन इस काव्य में सुन्दर
रीति से हुआ है। इसमें सुकमाल के वैभवपूर्ण जीवन एवं मुनि अवस्था की घोर तपस्या का प्रति सुन्दर एवं रोमान्चकारी वर्णन मिलता है। पूरे काव्य में ९ सर्ग हैं।
११. मलाचार प्रवीप-यह आचारशास्त्र का ग्रन्थ है जिसमें जैन साधु के जीवन में कौन २ सी क्रियाओं की साधना मावश्यक है-इन क्रियानों का स्वरूप एवं उनके भेद प्रभेदों पर अच्छा प्रकाश डाला गया है । इसमें १२ अधिकार हैं जिनमें २८ मूल गुण,' पंचाचार, दशलक्षणधर्म, बारह अनुप्रेक्षा एवं बारह तप आदि. का विस्तार से वर्णन किया गया है।
१२. सिद्धान्तसार बीपक—यह करणानुयोग का ग्रन्थ है-इसमे उद्ध' लोक, मध्यलोक एवं पाताल लोक एवं उनमें रहने याले देदों मनुष्यों और लिययों और नारकियों का विस्तृत वर्णन है । इसमें जैन सिद्धान्तानुसार सारे विश्व का भूगौलिक एवं खगौलिक वर्णन पा जाता है । इसका रचना काल सं० १४८१ है रचना स्थान है-बड़ाली नगर । प्रेरक थे इसके . जिनदास ।।
२८ मूलगुण--पंच महानत, पंचसमिति, तीन गुप्ति, पंचेन्द्रिय निरोध,
षटावश्यक, केशलोंच, अचेलक, अस्नान, बंतप्रधोवन । पंचाचार-दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप एवं वीर्य । दशलक्षण धर्म-क्षमा, भार्दव, प्रार्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग,
आकिंचन्य एवं ब्रह्मचर्य । बारह अनुप्रेक्षा-अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्य त्व, अशुचि,
आस्रव, संवर, निर्जरा, लोक, बोधदुर्लभ एवं धर्म | बारह तप-अनशन, अवमौदर्य, प्रतपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्त
शय्यासन, कायबलेश प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्य , स्वाध्याय, व्युत्सर्ग, ध्यान ।
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