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भः सकलकीति
की अपेक्षा से कर्मों के बंधका वर्णन है । वर्णन सुन्दर एवं बोधगम्य है। यह ग्रन्थ ५४७ दलोक संस्था प्रमाण है रचना सीमा प्रकाशिन।
४. तत्वार्थसार दीपक-सकानकोत्ति ने अपनी इस कृति को अध्यात्म महाग्रन्थ काहा है । जीव, अजीव, मानव, बन्ध संबर, निर्जरा तथा मोक्ष इन सात तत्त्रों का यणं न १२ अध्यायों में निम्न प्रकार विभक्त है।
प्रथम सात अध्याय तक जीव एवं उसकी विभिन्न अवस्थाओ का वर्णन है शेष ८ से १२ वें अध्याय में अजीव, प्रामक, बन्च संवर, निर्जरा, मोक्ष का क्रमशः वर्णन है । ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है।
५. धन्यकुमार चरित्र- यह एक छोटा सा ग्रन्थ है जिसमें सेट धन्यकुमार के पायन जीवन का मशोगान किया गया है । पूरी कथा सात अधिकारों में समाप्त होतो है। घन्यकुमार का सम्पूर्ण जीवन अनेक कुतुहलों एवं विशेषताओं से ओतप्रोत है । एक बार कथा प्रारम्भ करने के पश्चात् पूरी पळे बिना उसे छोड़ने को मन नहीं कहप्ता । भाषा सरल एवं सुन्दर है।
६. नेमिजिन परित्र-नेमिजिन चरित्र का दूसरा नाम हरिवंशपुराण भी है। नेमिनाथ २२ वें तीर्थकर थे जिन्होंने कृष्ण युग में अवतार लिया था। वे कृष्ण के चचेरे भाई थे । अहिंसा में दुद विश्वास होने के कारण तोरण द्वार पर पहुंचकर एफ स्थान पर एकत्रित जीवों को वध के लिये लाया हुआ जानकर विवाह के स्थान पर दीक्षा ग्रहण करली थी तथा राजुल जैसी अनुपम सुन्दर राजकुमारी को त्यागने में जरा मी विचार नहीं किया । इस प्रकार इसमें मगवान नेमिनाथ एवं श्री कृष्ण के जीवन एवं उनके पूर्व भवों में वर्णन हैं । कृति की भाषा काव्यमय एवं प्रवाहयुक्त है । इसकी संवत् १५७१ में लिखित एक प्रति प्रामेर शास्त्र मण्डार जयपुर में संग्रहीत है।
७. मल्लिनाथ चरित्र-२० वें तीर्थकर मल्लिनाथ के जीवन पर यह एक छोटा सा प्रबन्ध काव्य है जिसमें ७ सर्ग हैं
८. पाश्वमाथ चरित्र-इसमें २३ व तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ के जीवन का वर्णन है । यह एक २३ सर्ग वाला सुन्दर काव्य है। मंगलाचरण, के पश्चात् कुन्दकुन्द, अकलंक, समंतभद्र, जिनसेन आदि प्राचार्यों को स्मरण किया गया है।
वायुभूति एवं मरुभूति ये दोनों सगे भाई थे लेकिन शुभ एवं अशुभ कर्मों के चक्कर से प्रत्यैक भव में एक का किस तरह उत्थान होता रहता है और दूसरे का घोर पतन-इस कथा को इस काव्य में अति सुन्दर रीति से वर्णन किया गया है । वायुभूति अन्त में पार्श्वनाथ बनकर निर्वाण प्राप्त कर लेते हैं तथा जगदपूज्य बन जाते हैं । भाषा सीधी, सरल एवं अलंकारमयी है ।