Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पन्द्रहवां इन्द्रिय पद - प्रथम उद्देशक अल्प बहुत्व द्वार
सेन्द्रिय संख्यातगुणी है, उससे घ्राणेन्द्रिय अवगाहना की अपेक्षा से संख्यातगुणी है, उससे जिह्वेन्द्रिय अवगाहना की अपेक्षा से असंख्यातगुणी है, उससे स्पर्शनेन्द्रिय अवगाहना की अपेक्षा से संख्यातगुणी है, स्पर्शनेन्द्रिय की अवगाहना की अपेक्षा से चक्षुरिन्द्रिय प्रदेश की अपेक्षा से अनन्तगुणी है, उससे श्रोत्रेन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से संख्यातगुणी है, उससे घ्राणेन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से संख्यातगुणी है, उससे जिह्वेन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणी है, उससे स्पर्शनेन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से संख्यातगुणी है।
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विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में इन्द्रियों के अवगाहना, प्रदेश और अवगाहना प्रदेश की अपेक्षा से अल्पबहुत्व का कथन किया गया है- सबसे थोड़ी चक्षुइन्द्रिय की अवगाहना है अर्थात् चक्षु इन्द्रिय की अवगाहना सबसे थोड़े आकाश प्रदेशों की है उससे श्रोत्रेन्द्रिय अवगाहना की अपेक्षा संख्यातगुणी है क्योंकि वह चक्षुइन्द्रिय की अपेक्षा अत्यधिक प्रदेशों में अवगाढ है। उससे घ्राणेन्द्रिय की अवगाहना संख्यातगुणी है क्योंकि वह और भी अधिक प्रदेशों में अवगाढ़ है। उससे जिह्वेन्द्रिय अवगाहना की अपेक्षा असंख्यातगुणी अधिक है क्योंकि जिह्वेन्द्रिय का विस्तार अंगुल पृथक्त्व परिमाण है जबकि चक्षु आदि तीन इन्द्रियाँ प्रत्येक अंगुल के असंख्यातवें भाग विस्तार वाली है अतः असंख्यात गुणी है। उससे स्पर्शनेन्द्रिय अवगाहना की अपेक्षा संख्यात गुणी है। क्योंकि जिह्वेन्द्रिय का विस्तार अंगुल पृथक्त्व (दो अंगुल से नौ अंगुल तक) होता है जबकि स्पर्शनेन्द्रिय शरीर परिमाण है। शरीर अधिक से अधिक लाख योजन परिमाण होता है। अतः जिह्वेन्द्रिय से स्पर्शनेन्द्रिय असंख्यातगुणी अधिक नहीं होकर संख्यातगुणी अधिक कही गयी है जो युक्तियुक्त है। इसी क्रम से प्रदेशों की अपेक्षा से एवं अवगाहना और प्रदेशों की अपेक्षा अल्पबहुत्व समझ लेना चाहिये ।
सोइंदियस्स णं भंते! केवइया कक्खड गरुय गुणा पण्णत्ता ?
गोयमा ! अनंता कक्खड गरुय गुणा पण्णत्ता, एवं जाव फासिंदियस्स ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय के कर्कश और गुरु गुण कितने कहे गए हैं ?
उत्तर - हे गौतम! श्रोत्रेन्द्रिय के कर्कश और गुरु गुण अनन्त कहे गए हैं। इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय
से लेकर यावत् स्पर्शनेन्द्रिय तक के कर्कश और गुरु गुण के विषय में कहना चाहिए।
सोइंदियस्स णं भंते! केवइया मउय लहुय गुणा पण्णत्ता ?
गोयमा ! अनंता मउय लहुय गुणा पण्णत्ता, एवं जाव फासिंदियस्स ॥ ४३१॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय के मृदु और लघु गुण कितने कहे गए हैं ?
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