Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 407
________________ 394 प्रज्ञापना सूत्र से वे बहुत अधिक होने से तथा अत्यधिक सूक्ष्म होने से उनके प्रदेश अनन्त गुणा अधिक हो जाते हैं। कार्मण वर्गणाएं तैजस वर्गणाओं की अपेक्षा परमाणुओं की दृष्टि से अनन्त गुणी होती है। ___. द्रव्य और प्रदेश शामिल की अपेक्षा - सबसे थोड़े द्रव्य की अपेक्षा आहारक शरीर है, उनसे वैक्रिय शरीर द्रव्यार्थ रूप से असंख्यात गुणा हैं, उनसे भी औदारिक शरीर द्रव्यार्थ रूप से असंख्यात गुणा हैं। यहाँ भी पूर्वोक्त युक्ति से समझना चाहिये। द्रव्यार्थ रूप से औदारिक शरीर की अपेक्षा आहारक शरीर प्रदेशार्थ से अनन्त गुणा हैं क्योंकि औदारिक शरीर सब मिल कर भी असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण है और आहारक शरीर योग्य एक-एक वर्गणा में अभव्यों से अनंत गुणा परमाणु होते हैं। उनसे वैक्रिय शरीर प्रदेशार्थ रूप से असंख्यात गुणा हैं। उनसे औदारिक शरीर प्रदेश की अपेक्षा असंख्यात गुणा हैं। इस विषय में युक्ति पूर्ववत् है। उनसे भी तैजस कार्मण शरीर द्रव्य की अपेक्षा अनन्त गुणा हैं क्योंकि वे बहुत बड़ी अनन्त संख्या से युक्त हैं। उनसे भी तैजस शरीर प्रदेशार्थ रूप से अनन्त गुणा हैं क्योंकि अनन्त परमाणु रूप ऐसी अनन्त वर्गणाओं से एक-एक तैजस शरीर बनने योग्य है। उनसे भी कार्मण शरीर प्रदेश की अपेक्षा अनन्त गुणा हैं। इसका कारण पूर्वानुसार समझ लेना चाहिये। इस प्रकार पांच शरीरों की द्रव्य, प्रदेश और उभय की अपेक्षा अल्पबहुत्व का कथन किया गया है। . औदारिक शरीर के द्रव्यार्थ से आहारक शरीर प्रदेशार्थ से अनन्तगुणा बताये गये हैं। क्योंकि औदारिक शरीर सब मिलकर भी असंख्यात लोकाकाश प्रदेशों के बराबर हैं जब कि प्रत्येक आहारक शरीर योग्य वर्गणा में अभव्यों से अनन्तगुणा और सिद्धों के अनन्तवें भाग जितने प्रदेश होते हैं। अत: अनन्तगुणा हो जाते हैं। तैजस कार्मण शरीर सभी संसारी जीवों के होने से द्रव्यार्थ से ये दोनों शरीर परस्पर तुल्य हैं। परन्तु प्रदेश तो कार्मण शरीर के अनन्त गुणे अधिक हैं। क्योंकि यह सूक्ष्म शरीर होने से तथा इसके पुद्गल चतुःस्पर्शी होने से पुद्गल भी अधिक ग्रहण करते हैं। अतः प्रदेश अनन्त गुणा हो जाते हैं। 7. शरीर की अवगाहना का अल्पबहुत्व द्वार एएसि णं भंते! ओरालिय वेउब्विय आहारग तेयग कम्मग सरीराणं जहणियाए ओगाहणाए उक्कोसियाए ओगाहणाए जहण्णुक्कोसियाए ओगाहणाए कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोंयमा! सव्वत्थोवा ओरालियसरीरस्स जहणिया ओगाहणा, तेयाकम्मगाणं दोण्ह वि तुल्ला जहणिया ओगाहणा विसेसाहिया, वेउव्वियसरीरस्स जहणिया ओगाहणा असंखिजगुणा, आहारगसरीरस्स जहणिया ओगाहणा असंखिजगुणा, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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