Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र cocccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccoccoDDDDDDDDcccccccccccccccce
[आचार्य स्कन्दिल की माथुरी वाचना को व्यवस्थित रूप से लिपिबद्ध करने वाले आचार्य देवर्द्धिगणि थे तथा उनके समय में ही आचार्य नागार्जुन की वलभी वाचना को लिपिबद्ध करने वाले 'कालकाचार्य (चतुर्थ)' और इनके उपप्रमुख-'वादिवैताल शान्तिसूरि' थे। देवर्द्धिगणि आचार्य कालक से भी ज्यादा ज्ञानी थे। अत: इनकी प्रधानता से शास्त्र लिपिबद्ध किये गये तथा वलभी वाचना को "पाठान्तर" रूप से स्वीकार किया गया। इस कारण से वर्तमान के ३२ आगमों में अनेक जगह पर 'पाठान्तर' एवं 'मतान्तर' मिलते हैं।]
उनमें से पहले अपेक्षा वादियों का कथन है कि-स्त्रीवेद के आठ भवों में से कोई जीव ५-६ भव कर्मभूमि स्त्रियों के या तिर्यचणियों के (करोड़-करोड़ पूर्व की स्थिति के) करें एवं दो भव 'दूसरे देवलोक' की अपरिगृहीता देवियों के करे तब स्त्रीवेद की उत्कृष्ट स्थिति ११० पल्योपम प्रत्येक करोड़ पूर्व अधिक होती है।' दूसरे अपेक्षावादी 'दूसरे देवलोक की परिगृहीता देवी के दो भव मान कर १८ पल्योपम प्रत्येक करोड़ पूर्व कायस्थिति मानते हैं।' तीसरे अपेक्षावादी 'पहले देवलोक की परिगृहीता देवी के ही दो भव मानकर १४ पल्योपम प्रत्येक करोड़ पूर्व स्थिति मानते हैं।' चौथे अपेक्षावादी 'पहले देवलोक की अपरिगृहीता देवी के ही दो भव मानकर १०० पल्योपम प्रत्येक करोड़ पूर्व अधिक स्थिति मानते हैं।' पांचवें अपेक्षावादियों के मत से 'पहले ५-६ भव कर्म भूमि (करोड़ पूर्व की) मनुष्यणियों के या तिर्यचणियों के करा कर फिर सातवां भव तीन पल्योपम की स्थिति वाली मनुष्यणी या तिर्यचणी का तथा आठवां भव-पहले दूसरे देवलोक में एक पल्योपम की स्थिति वाली देवी का करा कर टीकाकार 'प्रत्येफ (चार) पल्योपम प्रत्येक (छह) करोड़ पूर्व स्त्री वेद की उत्कृष्ट कायस्थिति मानते हैं।' परन्तु पूज्य गुरुदेव बहुश्रुत पंडित रत्न श्री समर्थमल जी म. सा. तीन पल्योपम 'युगलिनी के' तथा तीन पल्योपम 'देवी के' इस प्रकार छह पल्योपम 'प्रत्येक' में लेते थे। क्योंकि भगवती सूत्र शतक २४ में युगलिक का कालादेशछह पल्योपम का बताया ही है। अत: छह पल्योपम कहने में कोई बाधा नहीं आती है एवं पहले सात भव कर्मभूमि स्त्रियों के करने में बाधा नहीं होने से प्रत्येक करोड़ पूर्व (७ करोड़ पूर्व) कर्म भूमिज स्त्रियों के कुल ९ भव होना संभव है।
__ क्योंकि अन्य चार मतों में कर्मभूमि मनुष्य या तिर्यंचणी के ५-६ भव करके दो भव देवी के बीच में एक भव कर्म भूमि मनुष्य या तिथंचणी का ऐसे ९ भव तो माने ही है। फिर अवश्य ही वेदान्तर होता है।
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