Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 372
________________ इक्कीसवां अवगाहना-संस्थान पद - प्रमाण द्वार ३५९ उत्तर - हे गौतम! कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है, किन्तु न तो अकर्मभूमिक-गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है और न ही अन्तरद्वीपज गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है। जइ कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणूस पंचिंदिय वेउव्विय सरीरे किं संखिज वासाउय कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणूस पंचिंदिय वेउब्विय सरीरे, असंखिज वासाउय कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणूस पंचिंदिय वेउब्विय सरीरे? गोयमा! संखिजवासाउय कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणूस पंचिंदिय वेउव्विय सरीरे, णो असंखिज वासाउय कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणूस पंचिंदिय वेउव्विय सरीरे। - भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! यदि कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है तो क्या संख्येय वर्षायुष्क-कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है, अथवा असंख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है? ... उत्तर - हे गौतम! संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है, किन्तु असंख्येय वर्षायुष्क-कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर नहीं होता है। ___ जइ संखिज्जवासाउय कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणूस पंचिंदिय वेउव्विय सरीरे किं पजत्तग संखिज वासाउय कम्मभूमग-मणूस-पंचिंदिय वेउव्विय सरीरे, अपजत्तगसंखिज वासाउय-कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणूस पंचिंदिय वेउव्विय सरीरे? गोयमा! पजत्तग संखिज वासाउय कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणूस पंचिंदियवेउव्वियसरीरे, णो अपजत्तग संखिज वासाउय कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणूसपंचिंदिय वेउव्विय सरीरे। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! यदि संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है तो क्या पर्याप्तक संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है, अथवा अपर्याप्तक संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है? - उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है, किन्तु अपर्याप्तक संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर नहीं होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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