Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 391
________________ 378 प्रज्ञापना सूत्र पुढविकाइय एगिदिय तेयगसरीरे णं भंते! किंसंठिए पण्णत्ते? गोयमा! मसूरचंद संठाणसंठिए पण्णत्ते। भावार्थ-प्रश्न-हे भगवन्! पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तैजस शरीर किस संस्थान वाला कहा गया है? उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तैजस शरीर मसूरचन्द्र (मसूर की दाल) के आकार का कहा गया है। एवं ओरालिय संठाणाणुसारेण भाणियव्वं जाव चउरिदियाण वि। भावार्थ - इसी प्रकार अन्य एकेन्द्रियों से लेकर यावत् चउरिन्द्रियों के तैजसशरीर संस्थान का कथन इनके औदारिक शरीर संस्थानों के अनुसार करना चाहिए। णेरइयाणं भंते! तेयग सरीरे किंसंठिए पण्णत्ते? गोयमा! जहा वेउव्विय सरीरे। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिकों का तैजस शरीर किस संस्थान का कहा गया है? उत्तर - हे गौतम! जैसे वैक्रिय शरीर के संस्थान का कथन किया है उसी प्रकार इनके तैजस शरीर के संस्थान का कथन करना चाहिए। पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियाणं मणूसाणं जहा एएसिं चेव ओरालियत्ति। भावार्थ - पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों और मनुष्यों के तैजस शरीर के संस्थान का कथन उसी प्रकार करना चाहिए, जिस प्रकार इनके औदारिक शरीरगत संस्थानों का कथन किया गया है। देवाणं भंते! तेयग सरीरे किंसंठिए पण्णत्ते? गोयमा! जहा वेउव्वियस्स जाव अणुत्तरोववाइयत्ति॥५७६ // भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! देवों के तैजस शरीर का संस्थान किस प्रकार का कहा गया है? * उत्तर - हे गौतम! जैसे असुरकुमार से लेकर यावत् अनुत्तरौपपातिक देवों तक के वैक्रिय शरीर के संस्थान का कथन किया गया है, उसी प्रकार इनके तैजस शरीर के संस्थान का कथन करना चाहिए। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के तैजस शरीर का संस्थान कहा गया है। तैजस शरीर जीव के प्रदेशों के अनुसार होता है अतएव जिस भव में जिस जीव के औदारिक या वैक्रिय शरीर के अनुसार आत्म प्रदेशों का जैसा आकार होता है वैसा ही उन जीवों के तैजस शरीर का आकार होता है। जीवस्स णं भंते! मारणंतिय समुग्धाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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