Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________ इक्कीसवां अवगाहना-संस्थान पद - द्रव्य प्रदेश अल्पबहुत्व द्वार 391 तेयाकम्माइं जहा ओरालिए समं तहेव आहारगसरीरेण वि समं तेयाकम्मगाई चारेयव्याणि। भावार्थ - जैसे औदारिक शरीर के साथ तैजस एवं कार्मण शरीर के संयोग का कथन किया है, . उसी प्रकार आहारक शरीर के साथ भी तैजस कार्मण शरीर के संयोग का कथन करना चाहिए। जस्स णं भंते! तेयगसरीरं तस्स कम्मगसरीरं, जस्स कम्मगसरीरं तस्स तेयगसरीरं? गोयमा! जस्स तेयगसरीरं तस्स कम्मगसरीरं णियमा अत्थि, जस्स वि कम्मगसरीरं तस्स वि तेयगसरीरं णियमा अत्थि॥५७९॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जिसके तैजस शरीर होता है, क्या उसके कार्मण शरीर होता है ? . तथा जिसके कार्मण शरीर होता है, क्या उसके तैजस शरीर भी होता है? ' उत्तर - हे गौतम! जिसके तैजस शरीर होता है, उसके कार्मण शरीर अवश्य ही नियम से होता है और जिसके कार्मण शरीर होता है, उसके तैजस शरीर अवश्य होता है। विवेचन - तैजस और कार्मण शरीर परस्पर नियत सहचारी होने से जिसके तैजस शरीर होता है उसके कार्मण शरीर अवश्य होता है और जिसके कार्मण शरीर होता है उसके तैजस शरीर अवश्य होता है। 6. द्रव्य प्रदेश अल्पबहुत्व द्वार . एएसि णं भंते! ओरालिय वेउव्विय आहारग तेयग कम्मग सरीराणं दव्वट्ठयाए पएसट्ठयाए दव्वट्ठपएसट्ठयाए कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा आहारगसरीरा दव्वट्ठयाए, वेउव्वियसरीरा दव्वट्ठयाए असंखिज्जगुणा, ओरालियसरीरा दवट्ठयाए असंखिजगुणा, तेयाकम्मगसरीरा दोवि तुल्ला दव्वट्ठयाए अणंतगुणा। . पएसट्टयाए-सव्वत्थोवा आहारगसरीरा पएसट्ठयाए, वेउव्वियसरीरा पएसट्टयाए असंखिजगुणा, ओरालियसरीरा पएसट्टयाए असंखिजगुणा, तेयगसरीरा पएसट्टयाए अणंतगुणा, कम्मगसरीरा पएसट्ठयाए अगंतगुणा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org