Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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________________ इक्कीसवां अवगाहना-संस्थान पद - प्रमाण द्वार 379 गोयमा! सरीरप्पमाणमेत्ता विक्खंभबाहल्लेणं, आयामेणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखिज्जइभागं, उक्कोसेणं लोगंताओ लोगंते। . कठिन शब्दार्थ - सरीरप्पमाणमेत्ता - शरीर प्रमाण मात्र, विक्खंभ - विष्कम्भ-उदर आदि का विस्तार, बाहल्लेणं - बाहल्य-छाती और पीठ भाग की मोटाई। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! मारणान्तिक समुद्घात से समवहत (समुद्घात किये हुए) जीव के तैजस शरीर की अवगाहना कितनी होती है ? उत्तर - हे गौतम! विष्कम्भ (विस्तार) और बाहल्य (मोटाई) से शरीर प्रमाण मात्र तैजस शरीर की अवगाहना होती है। लम्बाई की अपेक्षा तैजस शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की होती है और उत्कृष्ट अवगाहना सब तरह लोकान्त से.लोकान्त तक होती है। एगिदियस्सणं भंते! मारणांतिय समुग्घाएणं समोहयस्स तेया सरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णता? गोयमा! एवं चेव, जाव पुढवि० आउ० तेउ० वाउ० वणस्सइकाइयस्स। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! मारणान्तिक समुद्घात से समवहत एकेन्द्रिय के तैजस शरीर की * अवगाहना कितनी कही गई है? . उत्तर - हे गौतम! समुच्चय जीव के समान मारणान्तिक समुद्घात से समवहत एकेन्द्रिय के तैजस शरीर की अवगाहना भी विष्कम् और बाहल्य की अपेक्षा से शरीर प्रमाण और लम्बाई की अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना पृथ्वी, अप, तेजो, वायु, वनस्पतिकायिक तक पूर्ववत् समझनी चाहिए। - विवेचन - मारणान्तिक समुद्घात को प्राप्त जीव के तैजस शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना लोकान्त से लोकान्त तक की कही गई है। लोकान्त से लोकान्त तक अर्थात् अधोलोक के चरमान्त से ऊर्ध्वलोक के चरमान्त तक, अथवा ऊर्ध्वलोक के चरमान्त से अधोलोक के चरमान्त तक। यह तैजसशरीरीय उत्कृष्ट अवगाहना सूक्ष्म या बादर एकेन्द्रिय के तैजसशरीर की अपेक्षा से समझना चाहिए। क्योंकि सूक्ष्म और बादर एकेन्द्रिय ही यथायोग्य समस्त लोक में रहते हैं। अन्य जीव नहीं। इसलिए एकेन्द्रिय के सिवाय अन्य किसी जीव की इतनी अवगाहना नहीं हो सकती। प्रस्तुत सूत्र में तैजस शरीरीय अवगाहना मृत्यु के समय जीव को मरकर जिस गति या योनि में जाना होता है, वहाँ तक की लक्ष्य में रख कर बताई गई है। अतएव जब कोई एकेन्द्रिय जीव (सूक्ष्म या बादर) मृत्यु के समय अधोलोक के अन्तिम छोर में स्थित हो और ऊर्ध्वलोक के अन्तिम छोर में उत्पन्न होने वाला हो, अथवा वह मरणसमय में ऊर्ध्वलोक के अन्तिम छोर में स्थित हो और अधोलोक के अन्तिम छोर में उत्पन्न होने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org