Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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________________ 376 प्रज्ञापना सूत्र आहारग सरीरे णं भंते! किंसंठिए पण्णत्ते? गोयमा! समचउरंस संठाणसंठिए पण्णत्ते। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! आहारक शरीर किस संस्थान वाला कहा गया है? उत्तर - हे गौतम! आहारक शरीर समचतुरस्र संस्थान वाला कहा गया है। आहारग सरीरस्स णं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं देसूणा रयणी, उक्कोसेणं पडिपुण्णा रयणी॥५७५॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! आहारक शरीर की अवगाहना कितनी कही गई है? उत्तर - हे गौतम! आहारक शरीर की अवगाहना जघन्य देशोन (कुछ कम) एक हाथ की तथा उत्कृष्ट पूर्ण एक हाथ की होती है। विवेचन - आहारक शरीर की जघन्य अवगाहना कुछ कम एक हाथ की होती है क्योंकि सभी चौदह पूर्व धारियों के द्वारा बनाए हुए आहारक शरीर की समान अवगाहना नहीं होती है, छोटी बड़ी होती है। वह छोटा बड़ापन देशोन (मुण्ड) हाथ से एक हाथ तक होता है। इस प्रकार आहारक शरीर .. बनाने वाले त्रैकालिक सभी जीवों (चौदह पूर्व धारियों) के आहारक शरीर की कुछ हीनाधिकता को बताने की दृष्टि से यहाँ पर आगमकारों ने आहारक शरीर की जघन्य अवगाहना देशोन हाथ और उत्कृष्ट अवगाहना एक हाथ की बताई है। तेयग सरीरे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते? . गोयमा! पंचविहे पण्णत्ते। तंजहा - एगिदिय तेयग सरीरे जाव पंचिंदिय तेयग सरीरे। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! तैजस शरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! तैजस शरीर पांच प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है - एकेन्द्रिय तैजस शरीर यावत् पंचेन्द्रिय तैजस शरीर। एगिदिय तेयग सरीरे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते? गोयमा! पंचविहे पण्णत्ते। तंजहा - पुढविकाइय० जाव वणस्सइकाइय एगिदिय तेयग सरीरे। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! एकेन्द्रिय तैजस शरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर - हे गौतम! एकेन्द्रिय तैजस शरीर पांच प्रकार का कहा गया है। यथा - पृथ्वीकायिक तैजस शरीर यावत् वनस्पतिकायिक तैजस शरीर। . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org