Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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इक्कीसवां अवगाहना-संस्थान पद - प्रमाण द्वार
३५७
जइ जलयर संखिजवासाउय गम्भवक्कंतिय तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय वेउव्विय सरीरे किं पजत्तग जलयर संखिजवासाउय गब्भवक्कंतिय तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय वेउब्विय सरीरे, अपजत्तग जलयर संखिजवासाउय गब्भवक्कंतिय तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय वेउव्विय सरीरे, अपज्जत्तग जलयर संखिजवासाउय गब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणिय पंचिंदिय वेउव्विय सरीरे? ___ गोयमा! पजत्तग जलयर संखिजवासाउय गब्भवक्कंतिय तिरिक्खजोणिय । पंचिंदिय-वेउव्विय सरीरे, णो अपजत्तग जलयर संखिजवासाउय गब्भवक्कंतिय तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय वेउव्विय सरीरे।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! यदि जलचर संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है तो क्या पर्याप्तक जलचर संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है, अथवा अपर्याप्तक जलचर संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है? __· उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक जलचर संख्यातवर्षायुष्क गर्भज तिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है, किन्तु अपर्याप्तक जलचर संख्यातवर्षायुष्क गर्भज तिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर नहीं होता है।
जइ थलयर तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय जाव सरीरे किं चउप्पय जाव सरीरे, परिसप्प जाव सरीरे? .
गोयमा! चउप्पय जाव सरीरे वि, परिसप्प जाव सरीरे वि। .
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! यदि स्थलचर संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है ? तो क्या पर्याप्तक स्थलचर या अपर्याप्तक स्थलचर संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यंचपंचेन्द्रियों के होता है? अथवा चतुष्पद स्थलचर संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यंच-पंचेन्द्रियों के होता है या फिर उर:परिसर्प पर्याप्तक अथवा भुजपरिसर्प पर्याप्तक स्थलचर संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रियों के भी वैक्रिय शरीर होता है?
उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक चतुष्पद स्थलचर संख्यातवर्षायुष्क गर्भज तिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रियों के भी वैक्रिय शरीर होता है, यावत् परिसर्प उर:परिसर्प एवं भुजपरिसर्प संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रियों के भी वैक्रिय शरीर होता है।
एवं सव्वेसिंणेयव्वं जाव खहयराणं पज्जत्ताणं, णो अपज्जत्ताणं।
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