Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 386
________________ इक्कीसवां अवगाहना-संस्थान पद - प्रमाण द्वार भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! यदि कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर होता है, तो क्या संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य के होता है या असंख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य के होता है? उत्तर - हे गौतम! संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर होता है, किन्तु / असंख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर नहीं होता है। जइ संखिजवासाउय कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणूस आहारग सरीरे किं पजत्तग संखिज्जवासाउय कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणूस आहारग सरीरे, अपज्जत्तग संखिजवासाउय कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणूस आहारग सरीरे? गोयमा! पजत्तग संखिजवासाउय कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणूस आहारग सरीरे, णो अपजत्तग संखिजवासाउय कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणूस आहारग सरीरे। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! यदि संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के आहारक शरीर होता है तो क्या पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य के होता है अथवा अपर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य के होता है? उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के आहारक शरीर होता है किन्तु अपर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के आहारक शरीर नहीं होता है। . जइ पजत्तग संखिजवासाउय कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणूस आहारग सरीरे किं सम्मट्टिी पजत्तग संखिजवासाउय कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणूस आहारग सरीरे, मिच्छट्ठिी पजत्तग संखिजवासाउय कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणूस आहारग सरीरे, सम्मामिच्छट्ठिी पजत्तग संखिजवासाउय कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणूस आहारग सरीरे? गोयमा! सम्महिट्ठी पजत्तग संखिजवासाउय कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणूस आहारग सरीरे, णो मिच्छट्ठिी पजत्त०, णो सम्मामिच्छट्ठिी पज्जत्तग संखिज्जवासाउय कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणूस आहारग सरीरे। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! यदि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के आहारक शरीर होता है तो क्या सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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